पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/१६८

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९—भारतीय भाषायें और अँगरेज़

अँगरेज़ लोग इस बात पर अक्सर दिल्लगी उड़ाया करते हैं कि हिन्दुस्तानियों को अच्छी अँगरेज़ी लिखना और बोलना नहीं आता। अँगरेज़ी अखबारों में बहुधा "बाबू इँगलिश' अर्थात् बाबू लोगों की अँगरेज़ी की दिल्लगी रहती है। अँगरेज़ी के समान अपूर्ण, अनियमित और उच्चारण-नियमहीन विदेशी भाषा में यदि इस देशवाले अँगरेज़ों ही की वैसी विज्ञता न प्राप्त कर सकें तो विशेष आश्चर्य की बात नहीं। आश्चर्य की बात तो यह है कि अँगरेज़ों में आज तक हिन्दी भाषा का एक भी अच्छा विद्वान् नहीं हुआ। जो विद्वान् माने जाते हैं वे भी हिन्दी लिखते घबराते हैं। अँगरेजों का इस देश से सम्बन्ध हुए दो सौ वर्ष होगये।परन्तु इतने दिनों में कितने अंगरेज़ों ने हिन्दुस्तानी भाषा में खूब लिख पढ़ लेने लायक विज्ञता प्राप्त की? जेता को विजित की भाषा का अच्छा ज्ञान होना बहुत आवश्यक है। उसके बिना प्रजा के आन्तरिक भाव राजा अच्छी तरह नहीं जान सकता।

अँगरेज़ी भाषा बहुत क्लिष्ट है। उसका व्याकरण और उच्चारण बिलकुल ही वाहियात और अनियमित है। तिस पर भी सैकड़ों हिन्दुस्तानी विद्वानों ने अँगरेज़ी में बड़ी बड़ी