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साहित्यालाप


भी यह दशा ! एक बार कलकत्ते के किसी अँगरेज़ी अखबार में हमने पढ़ा कि उसी तरफ़ किसा जिले के एक मैजिस्ट्रेट साहब अपने इजलास में बैठे हुए एक मुकद्दमा सुन रहे थे। उस समय मुकद्दमेवालों में से किसीने कहा कि "इस ज़मान पर मेरा चिर दिन ( बहुत रोज़ ) से कब्जा है"। साहब ने समझा चिर दिन किसी आदमी का नाम है । इससे आपने चिर दिन के हाजिर किये जाने का हुक्म दिया। ऐसी ऐसी बातें कहीं न कहीं प्राय: रोज़ ही हुआ करती हैं । अतएव साहब लोगों का चाहिए कि ज़रा अपनी तरफ़ एक नज़र देख कर तब बाबुओं की अँगरेज़ी पर हँसें। बाबू लोगों की अँगरेज़ी उस हिन्दी से हज़ार दर्जे अच्छी होती है जो साहब लोग अपने दरजी, भिस्ती, बहरा और खानसामा से बोलते हैं।

लेफ्टिनेंट कर्नल डब्ल्यू० एच० स्लीमन ने इस देश के सम्बन्ध में कई किताबें लिखी है । उन्नीसवें शतक के आरम्भ में आप इस देश में थे। फ़ौजी महकमे में भी आपने बहुत दिनों तक काम किया और मुल्की में भी। कई जिलों में आप जिले के प्रधान हाकिम के पद पर रहे । १८३५ ईस्वी में आप जबलपुर में थे। वहां से छुट्टी ले कर आप आबोहवा बदलने हिमालय की तरफ़ गये। और इस सफ़र से सम्बन्ध रखनेवाली बातों पर आपने दो जिल्दों में एक किताब लिखी। उसे आपने अपनी बहन को समर्पण किया है। उसके एक अध्याय में आपने अँगरेज़ों के हिन्दी न जानने के कई उदाहरण दिये हैं । उदाहरण