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मर्दुमशुमारी की में रिपोर्ट हिन्दी उर्दू


को ये रिपोर्ट देने की अधिक उदारता न दिखावेगी तब तक हम लोग इनसे यथेष्ट लाभ नहीं उठा सकते । जिस सूबे की चार करोड़ अस्सी लाख आबादी में से चार करोड़ सैंतीस लाख आदमी हिन्दी बोलते हैं उस सूबे के सिर्फ़ एक ही हिन्दी पत्र को गवर्नमेंट यह रिपोर्ट देने की कृपा करती है। परन्तु जिसमें सिर्फ़ इकतालीस लाख आदमी उर्दू बोलते हैं उसमें उर्दू के तीन अखबारों को वह यह रिपोर्ट मुफ़्त दे डालती है ! गवर्नमेंट को ऐसा न करना चाहिए। इस विषय में उसे अपनी नीति को, जहाँ तक हो सके, शीघ्र ही बदल देना चाहिए। यह तो हुई इन प्रान्तों की मर्दुमशुमारी की रिपोर्ट की बात । गेट साहब ने सारे हिन्दुस्तान की मर्दुमशुमारी पर जो रिपोर्ट लिखी है वह भी अब प्रकाशित हो गई है । उसे पढ़ना, उसकी महत्व-पूर्ण बातों पर विचार करना और उससे लाभ उठाना हम लोगों के लिए और भी अधिक ज़रूरी है। परन्तु, अफ़सोस है, वह भी हम लोगों के लिए सुलभ नहीं।

आज हम इस नोट में अपने ही प्रान्त की रिपोर्ट की केवल उन बातों पर विचार करते हैं जिनका सम्बन्ध हमारी भाषा से है । इस रिपोर्ट से एक बात का फ़ैसिला हो गया। वह यह कि जिसे गवर्नमेंट तथा उर्दू के अनेक पक्षपाती हिन्दुस्तानी कहते हैं वह और कुछ नहीं; वह ख़ालिस उर्दू है । लक्षण उसका चाहे जो किया जाय; बिठाई वह उर्दू ही के घर में जाती है । इस रिपोर्ट में पहले तो उर्दू कोई अलग भाषा ही नहीं मानी गई । वह सिर्फ़ हिन्दी की एक शाखा या एक बोली-