पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/१८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७७
मर्दुमशुमारी की रिपोर्ट में हिन्दी उर्दू


इतने प्रवीण नहीं हुए जितने कि वे अपनी आजन्म अभ्यस्त फ़ारसी लिपि लिखने में हैं। यही कारण है जो दोनों लिपियाँ जाननेवालों में फ़ारसी लिपि अधिक अच्छी तरह जाननेवालों का औसत अधिक है। इससे तो देवनागरी लिपि के प्रचाराधिक्य ही का सबूत मिलता है। कचहरियों में जो लोग शुरू ही से फ़ारसी लिपि में काम करते आ रहे हैं उन्हें देवनागरी भी सीखने की आज्ञा है। यह इसी आज्ञा का फल है जो वे नागरीलिपि सीख गये हैं, पर उसमें वे इतने अभ्यस्त नहीं जितने कि फ़ारसी लिपि में हैं।

उर्दू भाषा और फ़ारसी लिपि का प्रचार बढ़ने के कोई लक्षण नहीं दिखाई देते । इस बात को ब्लन्ट साहब भी स्वीकार करते हैं । आपने कबूल किया है कि उर्दू भाषा और फ़ारसी लिपि का जो प्रचार इन प्रान्तों में है उसका कारण उनका कचहरियों में जारी होना है । कचहरी के कर्मचारी अर्ज़ीनवीस, मुख्तार और वकीलों के मुहर्रिर लड़कपन से यही भाषा और यही लिपि लिखते आते हैं। यही लोग इस भाषा और इस लिपि के विशेष प्रेमी हैं । पर ये लोग भी अब हिन्दी सीखते जाते हैं, और, आशा है, अगली मर्दुमशुमारी में हिन्दी भाषा और नागरी लिपि के प्रचाराधिक्य के और भी अधिक प्रमाण मिलेंगे।

मर्दुमशुमारी के सुपरिंटेंडेंट ब्लन्ट साहब की शिकायत है कि हम लोग संस्कृत के अपरिचित और अनावश्यक शब्द