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उर्दू और आज़ाद


हिन्दी से बहुत बढ़ी चढ़ी अवस्था में हैं । उन की प्रणाली न स्वीकार कर के देहली और लख़नऊ की महा अनस्थिर, व्या- करण-विरुद्ध और अस्वाभाविक भाषा की नक़ल कर के “जहाज बेनाख़ुदा" बन कर प्रमाद महासागर में जान बूझ कर डूबना है।

[अप्रेल १९०६

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