पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/२०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०४
साहित्यालाप


का झमेला ठीक नहीं; दोनों की जगह "हिन्दुस्तानी" को दे दी जाय । बस सरकार ने "तथास्तु" कह दिया और कलम के एक ही स्वल्प सञ्चालन से हिन्दी और उर्दू दोनों ही उड़ गई । “हिन्दुस्तानी" पर तो सरकार पहले ही से फिदा है । उसकी पसन्द की हुई स्कूली किताबें, उसके मुतरज्जिमों की तर्जुमा की हुई कानून की किताबें, उसके गैज़टों और इश्तहारों की बहुत ही चुस्त और दुरुस्त इबारतें उसके हिन्दुस्तानी प्रेम का पूरा प्रमाण है।

ऊपर ही ऊपर देखने से तो “हिन्दुस्तानी" का प्रयोग हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं के पृष्ठपोषकों की दृष्टि से एकसा हानिकारक है; क्योंकि इस नये नाम ने उन दोनों भाषाओं के नाम को उड़ा दिया है । पर इसके भीतर एक रहस्य है । कुछ समय से साहब लोगों तथा कुछ और भी दूरदर्शी महात्माओं ने हिन्दुस्तानी को उर्दू ही का वाचक मान रक्खा है। अतएव ऐसे लोग यदि समझे कि इन प्रान्तों में एक भी हिन्दी बोलनेवाला नहीं, समस्त प्रान्त हिन्दुस्तानी उर्फ़ उर्दू ही बोलता है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। यह धारणा हो जाने पर भविष्यत् में क्या क्या गुल खिल सकते हैं, और हिन्दी को आच्छादित कर लेने के लिए उस पर कैसी कैसी भ्रमोत्पादक घटायें घिर सकती हैं, इसका अनुमान अच्छी तरह किया जा सकता है।

बात ज़रा दर तक विचार करने की है। देहात के निवासी जानते हैं कि एक ही ज़िले में, दो दो चार चार कोस पर भी,बोली में कुछ न कुछ अन्तर पड़ जाता है। लखनऊ ज़िले के