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मर्दुमशुमारी की हिंदुस्तानी भाषा


प्रकाशित करना पड़ेगा। हिन्दू-उर्दू बोलने वालों को अनस्तित्व का पता यदि कहीं के नक्शों में मिलेगा तो परम सुधारक संयुक्त-प्रदेश ही के नक्शों में मिलेगा । सो इस प्रदेश की विशेषता की रक्षा के लिए भाषा-विषयक नक्शे या नक़्शों में एक ख़ाना "हिन्दुस्तानी" का भी रखना पड़ेगा । सो जहां और अनेक भाषायें या बोलियां इस देश में प्रचलित हैं वहाँ एक काल्पनिक भाषा “हिन्दुस्तानी" भी बढ़ानी पड़ेगी।

अच्छा, यह हिन्दुस्तानी भाषा है क्या चीज़ ? इसका नाम कुछ ही समय से सुन पड़ने लगा है ; यह कोई नई भाषा तो है नहीं। जो लोग हिन्दी या उर्दू अच्छी तरह नहीं बोल सकते---उदाहरणार्थ मदरासी, महाराष्ट्र और सबसे अधिक हमारे साहब लोग---उन्हीं की भ्रष्ट भाषा यदि हिन्दुस्तानी कही जा सके तो कही जा सकती है। यही लोग टूटीफूटी हिन्दी बोल कर किसी तरह अपना काम चलाते हैं। इसी अर्थ में "हिन्दुस्तानी" आख्या चरितार्थ हो सकती है । इसी अर्थ में वह सारे हिन्दुस्तान की भाषा हो सकती है । पर भ्रष्ट, अपभ्रष्ट या गलत-सलत भाषा बोलने से क्या किसी नई भाषा की सृष्टि भी हो सकती है ? यदि इंँगलैंड में रहनेवाले जापानी लस्टमपस्टम अँगरेजी बोले तो संयुक्त-प्रान्त की मनुष्य-गणना के बड़े साहब उनकी उस अँगरेज़ी को क्या कोई नया नाम देने को तैयार होंगे ? परन्तु तर्क, युक्ति और औचित्य को यहां पूछता कौन है और उनकी कदर करता कौन है ? मर्दुमशुमारी के साहब ने इन प्रान्तों की सरकार से सिफारिश कर दी कि हिन्दी-उर्दू