पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६
साहित्यालाप


भाइयों का है। पर इसके सम्पादक एक खास विलायती साहब हैं। हिन्दू-मुसल्मानों के मामलों में आप अकसर हिन्दुओं पर आग उगले बिना नहीं रहते। आपने देखा कि कुछ देश-हितैषी सज्जन देवनागरी लिपि के सार्वत्रिक प्रचार का यत्न कर रहे हैं। बस, झट, आपने अपने ५ जनवरी के अंक में एक सम्पादकीय लेख लिख डाला। आपका कहना है कि वर्तमान देवनागरी-लिपि अशोक के समय की लिपि से पैदा हुई है। पर अशोक को लिपि सीधी सादी थी। सब लोग उसे आसानी से लिख पढ़ सकते थे। परन्तु आज कल को जो लिपियां उसके आधार पर बनी हैं, वे सब बेतरह क्लिष्ट हैं। उनमें वर्णों और मात्राओं की संख्या बहुत बढ़ गई है; और यही कारण है जो हम लोगों में मूर्खता का इतना अटल राज्य है ! और कुछ सुनिएगा ? सुनिए। अशोक के समय की पाली लिपि इस देश की उद्भूत नहीं। हम लोगों ने उसे किसी विदेशी लिपि से उधार लिया है और उसे काट-छांट कर अपने मतलब का बनाया है! और कुछ सुनने की इच्छा है ? अच्छा, और सुनिए । इलाहाबाद में जो मिंटो-स्तम्भ बननेवाला है उस पर रोमन अक्षरों में एक लेख रहेगा। यही अक्षर सर्वोत्तम हैं। गवर्नमेंट को चाहिए कि एक रायल कमीशन नियत करे और इन रोमन अक्षरों का उलट-फेर करके इन्हें ऐसा बनावे जिसमें ४९ संस्कृत के और १५ फ़ारसी के अतिरिक्त वर्णों का उच्चारण और विलेखन ठीक ठोक इनसे होने लगे। ऐसा हो जाने पर सारे देश में यही रोमन-वर्णमाला प्रचलित कर दी जाय !!!