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साहित्यालाप


समझे जाते हैं, एक के बदले यहाँ चार चार भाषाओं का अस्तित्व स्वीकार करते हैं । इधर सरकार ही के अन्यतम कर्म-चारी, मर्दुमशुमारी के सुपरिंटेंडेंट, एडी साहब, हिन्दी और उर्दू, इन दो भाषाओं का भी भेद दूर करके एक "हिन्दुस्तानी" ही रखना चाहते हैं । अब किसकी बात ठीक मानी जाय या किसकी तारीफ़ की जाय ? डाक्टर साहब की या एडी साहब की?

सुपरिटेंडेंट साहब की शिकायत है कि १९२१ ईस्वी को मर्दुमशुमारी में, भाषा-विषयक विवाद ने बड़ा उग्ररूप धारण किया था। शुमारकुनिन्दा लोगों को भुलावे दिये गये थे; उन्होंने खुद भी, जिसकी जैसी मौज थी या जो जिस भाषा का पक्षपाती था, उसीको नक्शों में दर्ज किया था। इससे भाषा के सम्बन्ध में मनुष्य-गणना ठीक ठीक नहीं हुई। इसी दोष को दूर करने के लिए इस दफ़ आपने यह "हिन्दुस्तानी" तोड़ निकाली है। नतीजा यह हुआ कि इस प्रान्त में फ़ी दस हज़ार आदमियों में से ९ , ९७४ मनुष्य हिन्दुस्तानी बोलनेवाले निकल आये हैं और इस लेखे में रत्ती, बादाम, छदाम की भी भूल नहीं।

सुपरिटेंडेंट साहब को भाषा-विषयक वाद-विवाद इसलिए भी पसन्द नहीं कि उर्दू और हिन्दी के हामी इस पर धार्मिक रङ्ग चढ़ा दिया करते हैं । आपका यह कथन किसी हद तक ठीक भी है। पर इस रङ्ग को आप कहां कहां धोते फिरेंगे। इसने तो सारे भारत को ही सराबोर कर दिया है। जब आप मुसल्मानों के लिए शिक्षा का अलग प्रबन्ध करते हैं, जब आप उनके और