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मदुमशुमारी की हिन्दुस्तानी भाषा

हिन्दुओं के लिए कौंसिलों में कुर्सियों की संख्या अलग अलग निर्दिष्ट करते हैं, जब आप डिपटी कलकरी के उम्मेदवारों में भी धार्मिक बांट-बूट किया करते हैं तब आप भाषा-विषयक विवाद से क्यों इतना घबराते हैं ? एक विषय में तो एकाकार, अन्य विषयों में विभेद-योजना ! आपकी यह नीति साधारण जनों की समझ में तो आती नहीं, असाधारणों की समझ में चाहे भले ही आ जाय।

रही यह बात कि १९११ की मर्दुमशुमारी के अङ्क सही नहीं थे, क्योंकि हिन्दी-उर्दू के पक्षपातियों ने पक्षपात से काम लिया था। सो इसके उत्तर में हमारा निवेदन है कि आपको इससे क्या ? जो अपनी भाषा हिन्दी बतावे उसे आप हिन्दी भाषी समझे; जो अपनी भाषा उर्दू बतावे उसे उर्दू भाषी । वह सच ,कहता है या नहीं, इसके पीछे आप इतने हैरान क्यों ? यह बात आप बतानेवाले के दीनो-ईमान पर क्यों न छोड़ दें ? कोई टैक्स तो आपको वसूल करना नहीं, जो सच बात न कहने से टके कम मिलेंगे। अच्छा, आपही कहिए, आपने मर्दुमशुमारी के नक् शों में उम्र के हिसाब से यहां के निवासियों की जो गिनती की है वह क्या लोगों के जन्मपत्र या बैतिस्मे के रजिस्टर देख कर की है ? जिसने अपनी उम्र ५० वर्ष की बताई उसकी सचाई जांचने की कसोटी भी कोई आपने रक्खी ? वह सच कह रहा है या नहीं, इसकी शहादत भी आपने उससे मांगी ? नहीं मांगी और उसकी बात पर ही विश्वास कर लिया तो भाषा-विषयक उक्तियों पर क्यों न विश्वास किया जाय ?