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साहित्यालाप


चाह नहीं। यह बात हम प्रत्यक्ष देख रहे हैं। सौ में कठिनता से कहीं दस कवितायें अब ब्रजभाषा में लिखी जाती होंगी। उष:काल के तारों के सदृश जो अल्पसंख्यक कवि अब भी उसे अपनाये हुए हैं उनका भी लोप होने ही वाला है । समय-प्रवाह किसी के रोके नहीं रुक सकता। उसके वेग के सामने हठ, दुराग्रह, अन्धभक्ति नहीं ठहर सकती। सभी समझदार मनुष्य इस बात को हृदयङ्गम कर सकते हैं । अतएव दो-चार या दस-पाँच सज्जनों के प्रयत्न से ब्रजभाषा की शिक्षा के लिए यदि स्कूल और कालेज खुलें भी तो वे बहुत दिनों तक टिकने के नहीं । यदि व्रजमंडल में वहाँ की भाषा या बोली सिखाने और उसके साहित्य की शिक्षा देने के लिए स्कूल, कालेज या विश्वविद्यालय खोला जाय तो अन्यान्य प्रान्त या मंडल भी वैसा ही कोई शिक्षालय खोलने का आग्रह क्यों न करें ? तब तो बुंँदेलखन्ड के लिए बंदेलखन्डी भाषा का, बैसवारे के लिए बैसवारी का, मारवाड़ के लिए मारवाड़ी का और मिथिला के लिए मैथिली का भी एक स्कूल, कालेज या विश्वविद्यालय खुलना चाहिए । तब तो ख़ू ब तरक्की होगी। भिन्न भिन्न भाषाओं के प्रचाराधिक्य से एकता और एकराष्टीयता की वृद्धि भी खूब ही होगी!

कविता सभी भाषाओं और सभी बोलियों में हो सकती है। देहात में अपढ़, अशिक्षित और गँवार आदमियों के मुंँह से, उनकी बोली में, कविता सुनने को मिलती है । कभी कभी उनके गीतों में कवित्व की झलक और सुन्दर भावों का