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कवि सम्मेलन

संमिश्रण देख या सुनकर हृदय आनन्द से पुलकित हो जाता है। जब सभी भाषाओं और बोलियों में कविता हो सकती है और होती भी है तब ब्रजभाषा अपवाद नहीं। जिसकी इच्छा हो वह उसी भाषा या बोली में कविता लिखे और ब्रजवासियों ही को विशेषतया प्रसन्न करे । पर जो कवि बोलचाल की हिन्दी को व्यापक भाषा समझता होगा और जो यह चाहता होगा कि उसकी रचना बहुसंख्यक लोगों को पढ़ने को मिले और अन्यान्य प्रान्तों के निवासी भी उससे लाभ उठावें वह उसी में अपने हृदयोद्गार प्रकट करेगा । उसकी निन्दा या कुत्सा करनेवाले, जन-समुदाय के इजलास में, स्वयं ही निन्दा और कुत्सा के पात्र समझे जायँगे।

कई समाचार-पत्रों में पढ़ा कि वृन्दावन के कवि-सम्मेलन में किसीने कोई अश्लील कविता पढ़ दी जिससे कुछ श्रोता उद्विग्न हो उठे और उपस्थित महिलायें सभास्थल छोड़कर चली गयीं। विश्वास नहीं होता कि इतने बड़े सभ्यसमाज में कोई कवि अश्लील कवितायें सुनाने का साहस करेगा, फिर चाहे उसकी रुचि कितनी ही बुरी क्यों न हो । कवियों में आज-कल दलबन्दियाँ खुबही हो रही हैं। सम्भव है, किसी विपक्षी दल के एक या अनेक कवियों ने किसी शृङ्गाररसपूर्ण कविता को अश्लील कह दिया हो, जिसे सुनकर महिलायें उठ गई हों । उठकर उनके चले जाने के और भी तो कारण हो सकते हैं । सम्भव है, कवितायें उनकी समझ ही में न आती हो अथवा कोई कुरुचिपूर्ण उक्ति सुन कर उन्हें सङ्गोच हुआ