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साहित्यालाप

कानपुर के कवियों का एक दल अखिल-भारतवर्षीय कविसम्मेलन करने जा रहा है। अर्थात् उसके दङ्गल में सभी प्रान्तों के कवि-मल्ल अपना कर्तव्य दिखायेंगे। कांग्रेस के दिन हैं। मदरास तक के निवासी, और किसी काम से न सही, सैर-सपाटे ही के लिए ज़रूर ही कानपुर आवेंगे। यदि यहां के कुछ कवि भी आगये और सम्मेलन में अपनी कविता सुनाने लगे तो बड़ा मज़ा आवेगा। जिस समय तामील, तेलगू, मलयाली और कनारी भाषाओं की कविताओं का पाठ होगा उस समय अन्यप्रान्तों के उपस्थित श्रोता मुँह बाये बैठे रहेंगे। घड़े में कङ्कड़ भर कर ज़ोर से हिलाने पर जैसी ध्वनि निकलती है वैसी ही ध्वनि उस कविता-पाठ के समय होती सुनकर श्रोतृसमूह यदि सम्मेलन के कार्यकर्ताओं पर पुष्पवृष्टि न करेगा तो उन्हें शतशः और सहस्त्रश: धन्यवाद दिये बिना तो कदापि न रहेगा।

इसके जवाब में दूसरे दल को भी अपने सम्मेलन में कुछ नवीनता लाने की चेष्टा ज़रूर करनी चाहिए। इस दफ़े न सही, फिर कभी सही। हिन्दी-भाषा से सम्बद्ध जितनी बोलियाँ हैं उन सबके कवियों को भी उसे एक बार अपने सम्मेलन में आमन्त्रित करना चाहिए। यदि ऐसे कवि विद्यमान न हों तो छन्दशास्त्र और काव्यशास्त्र की शिक्षा देकर उन्हें तैयार करना चाहिए। उनकी कवितायें सचमुच ही अश्रुतपूर्व अत्यन्त ही रोचक होगी। जिस समय ब्रज, बांगडू, मारवाड़ी, मालवी, बुँदेलखन्डी, बैसवारी, मिर्ज़ापुरी, बिहारी और मैथिली आदि