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साहित्यालाप


दे सकते हैं कि वहाँ की साक्षरता रोमन-अक्षरों ही की कृपा का फल है ? व्याकरण और उच्चारण के विचार से अंगरेजी भाषा बहुत ही दोष पूर्ण और अस्वाभाविक है । पादरीसाहव का नाम-Knowles है। परन्तु हम जैसे अल्पज्ञ विदेशी उसका उच्चारण कमाल्यस, क्नैल्यस, नाउल्यस, नौल्ल, नोयल्यस, नावल्यस, नोल्स आदि एक नहीं दस बारह तरह कर सकते हैं । परन्तु, फिर भी, इस बात का विश्वास नहीं होता कि इनमें से कोई उच्चारण सही भी है या नहीं। जिस भाषा में But' का उच्चारण ‘बट' 'Put' का 'पुट' होता है वह कभी स्वाभाविक, निर्दोष और सहज-बोध-गम्य होने का दावा नहीं कर सकती। परन्तु जिस इंगलैंड में ऐसी दोषपूर्ण और अण्ड-वण्ड भाषा प्रचलित है उसकी साक्षरता क्यों इतनी बढ़ी चढ़ी है ? जिस की वर्णमाला भी सदोष, जिसकी भाषा भी सदोष वह इंगलैंड तो शिक्षा के शिखर पर आरूढ़ हो जाय। पर जिस भारत में देवनागरी के सदृश प्रायः निर्दोष वर्णमाला और हिन्दी के सदृश प्रायः निर्दोष भाषा प्रचलित हो उसमें शिक्षा-प्रचार की वृद्धि के लिए नये रोमन अक्षरों के प्रचार की आवश्यकता बताई जाय ? किमाश्चर्यमतः परम् !

योरप में प्रायः सर्वत्र ही रोमन अक्षरों का प्रचार है । परन्तु क्या योरप के सभी देश एक ही से साक्षर हैं ? क्या रूस का साइबेरिया और काकेशिया प्रान्त उतना ही शिक्षित है जितना कि इंगलैंड, या जर्मनी, या फ्रांस शिक्षित है ? यदि नहीं, तो यह कहां सिद्ध हुआ कि अच्छी वर्णमाला होने ही से