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साहित्यालाप


इतिहास न जाना चाहिए। उसकी रक्षा जी जान से करनी चाहिए। क्योंकि इतिहास के रक्षित रहने से खोई हुई स्वतन्त्रता फिर भी प्राप्त की जा सकती है ; पर उसके नष्ट हो जाने पर, यदि स्वतन्त्रता प्राप्त भी हो सकती है तो बड़ी बड़ी कठिनाइयां झेलने पर ही प्राप्त हो सकती है। जो जातियां इतिहास में अपने पूर्व-पुरुषों के गारव को रक्षित नहीं रखती, जो उनके कारनामों को भूल जाती है, जो अपने भूतपूर्व बल और विक्रम को 'विस्मृत कर देती हैं, वे नष्ट हो जाती है और नहीं भी नष्ट होतीं तो परावलम्ब के पङ्क में पड़ी हुई नाना यातनायें सहा करती हैं। अतएव, भाइयो, आप कृपा करके किसी ऐसे मन्त्र के अनुष्ठान को योजना कर दीजिए, जिसके प्रभाव से हम अपने व्यास और वाल्मीकि, कालिदास और भारवि, यास्क और पाणिने, कणाद और गौतम, सायन और महीधर को न भूलें शकारि,विक्रमादित्य, दिग्विजयी समुद्रगुप्त और महामनस्वी प्रताप का विस्मरण न होने दें; राम और कृष्ण,भीष्म और द्रोण,भीम और अर्जुन को सदा आदर की दृष्टि से देखें। प्राचीन साहित्य को इस इतिहास-शाखा का महत्त्व बता कर आप हमारे पूर्वार्जित गौरव को अज्ञान-सागर में डूबने से बचा लीजिए। क्योंकि जिस जाति का इतिहास नष्ट नहीं हुआ और जिसमें अपने पुण्य-पुरुषों का आदर बना हुआ है वही अपनी मातृभूमि के अधःपात से विदीर्णहृदय होकर, अनुकूल अवसर आने पर, फिर भी अपना नत मस्तक उन्नत कर सकती है।