पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/३२७

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साहित्यालाप

राय में काल-वाचक शब्दा के प्राधिक्य को बड़ा आवश्यकता है। उनकी संख्या कुछ और बढ़ जाय तो हिन्दी भाषा की सम्पदा, अधिक नहीं, तो कम से कम मन दो मन तो अवश्यही वृद्धि को प्राप्त हो जाय । इसीसे यदि वे ऊपर के वाक्य को अपने ढंग पर लिखते हैं तो लिखते हैं---

जब मैं काशी जाऊँगा तो आपको भी बुलाऊंगा।

जब और तब का काम जो और तो से भी लेकर उन्हें भी वे काल-वाचक बना डालते हैं। क्योंकि अपने आविष्कार को कृपा से उन्हें अवगत होगया है कि जो और तो ये दोनों ही क्रम से जब और तब के पर्यायवाची, अतएव, स्थान-परिवर्तनीय हैं । कहिए, कितना महत्वपूर्ण आविष्कार है !

एक सम्माननीय समालोचक को सम्मति है कि किसी समय सरस्वती में जो समालोचनायें निकलती थीं वे कुछ विशेषता रखती थीं । यदि उनका यह " विशेषता' शब्द अपकृष्टता या हीनता का सूचक है तो हम उनसे सोलहो आने सहमत हैं । परन्तु यदि वह उत्कृष्टतासूचक है तो सहमत नहीं। क्योंकि सरस्वती में प्रकाशित समालोचनाओं में हमें कभी कोई उत्कृष्टता नहीं दिखाई दी। हाँ, अपकृष्टता के प्रमाण अवश्य ही अनेक मिल चुके हैं। उनमें से एक को हम,अभी, लगे हाथ ही, आपके सामने रक्खे देते हैं । कुछ लेखक-शिरोमणियों ने अथ से इतिपय्र्यन्त अन्य भाषाओं की पुस्तकों