पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/३४

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४--देशव्यापक भाषा।

(१)

विषय-प्रवेश।

कुछ दिनों से दो एक सज्जनों का मन देश में एक भाषा करने की ओर आकर्षित हुआ है। पहले पहल परिडत वामन राव पेठे ने एक लेख, इस विषय पर, मराठी में लिख कर प्रकाशित किया। उन पर दक्षिण के अनेक विद्वानी और समाचारपत्रोंने अनुकूल सम्मति दी। पण्डित गंगाप्रसाद अग्निहोत्री ने उस लेख का हिन्दी में अनुवाद किया। यह अनुवाद नागरी-प्रचारिणी पत्रिका के तीसरे भाग में छपा है। यह लेख पड़ने योग्य है। इस लेख ने कुछ लोगों के हृदय में देश में एक भाषा होने की आवश्यकता का बीज अंकुरिल कर दिया। मराठी और गुजराती के समाचारपत्रों में, कभी कभी, इस विषय पर लेख निकलने लगे। एक आध मराठी और गुजराती समाचारपत्र ने तो मराठी और गुजराती के साथ साथ हिन्दी के लेख भी प्रकाशित करना स्वीकार किया। ये सब शुभ लक्षण हैं। विद्यानुराग में बढ़ा हुआ वङ्गदेश अभी तक बिलकुल चुप है। जहां तक हम जानते हैं, इस सम्बन्ध में, किसी वङ्गवासी ने चकार तक नहीं