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पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/३५७

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साहित्यालाप


कवियो ! उठो, अब तो भला कवि-कर्म की रक्षा करो,

सब नीच भावों का हरण कर उच्च भावों को भरो। इसमें और कुछ गुण हो या न हो, पर इसमें व्यक्त किया गया कवि का हद्भाव झट ध्यान में तो पा जाता है।

कवि-जन विश्वास रखें, कवियों के इस किङ्कर ने इस लेख में कोई बात द्वेष-बुद्धि से नहीं लिखी। जो कुछ उसने लिखा है, हितचिन्तना ही की दृष्टि से लिखा है। फिर भी यदि उसकी कोई बात किसीको बुरी लगे तो वह उसे उदारता-पूर्वक क्षमा कर दे-

आनन्दमन्थरपुरन्दरमुक्तमाल्यं

मौलो हठेन निहितं महिषासुरम्य ।

पादाम्बुजं भवतु ते विजयाय मन्जु-

मअरशिक्षितमनोहरमम्बिकायाः ।

महिषासुर के सिर ने जिसकी कठोर ठोकर खाई है और आनन्दमग्न पुरन्दर ने जिसपर फूल-माला चढ़ाई है, नूपुरों की मधुर-ध्वनि करनेवाला, भगवती अम्बिका का वही पादपदम, हिन्दी के छायावादी तथा अन्य कवियों को इतना बल दे कि वे अपने असद्विचारों को हरा कर उनपर सदा विजय-प्राप्ति करते रहे। अन्त में इस किङ्कर की यही कामना है।

[मई १६२७