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पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/३५६

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आजकल के छायावादी कवि और कविता


की कृपा से कुछ कूद पड़े हो। पाठक, इसमें ज्वार, तूफान, वसन्त, पतझड़ आदि की प्रभूत विभूति से विभावान्वित होकर कविजी से आप संभल कर पूछिए कि वे दो समान रूप किस किसके है। कवियों की वाणी में रस और चमत्कार होता है। वे पहेलियां नहीं बुझाते । नीरस बात को भी वे सरम ढंग से कहते हैं। वे मुर्दा शब्दों में भी जान डाल देते हैं। साधारण अर्थ में भी असाधारणता पैदा कर देते हैं। यदि कोई कहे---राहु नाम के राक्षस को मारने-वाले विष्णु भगवान को नमस्कार है-तो कवि उसे फटकार बता देगा । वह कहेगा-क्या बकते हो ! अपनी बात को इस तरह कहो!

नमस्तस्मै कृतो येन मुधा राहुबधुकुचौ

सत्कवियों की इस सरस वाणी को देखिए और बी० ए० पास कवि के प्रयुक्त शब्दों के तूफान में पड़ कर हिन्दी-साहित्य के सौभाग्य की प्रशंसा कीजिए।

पाठक शायद कहें कि ऊपर अच्छी कविता के जो दो नमूने‌ दिये गये हैं। उनमें भक्ति-भाव का प्रदर्शन है। इसी कारण वे श्रोताओं पर अपना प्रभाव डालते हैं। अच्छा तो जिसमें यह बात नहीं, ऐसी भी एक सत्कविता सुन लीजिए। हां, उसके लिए स्थिति-स्थान से उठ कर एक पुस्तक उठानी पड़ेगी। पर हर्ज नहीं । देखिए, एक कवि अन्य कवियों से कहता है-

मृत जाति को कवि ही जिलाते रस-सुधा के योग से

पर मारते हो तुम हमें उलटे विषय के रोग से।