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पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/३९

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साहित्यालाप



बङ्गला। उर्दू हिन्दी ही की एक शाखा है। दक्षिण में चार भाषायें प्रधान हैं-मराठी, गुजराती, कनारी और तामील । इनके सिवा और भी कई भाषायें हैं, परन्तु उनमें परस्पर कम भेद है। उन्हें इन्हीं भाषाओं के अन्तर्गत समझना चाहिए। यों तो थोड़ी थोड़ी दूर पर भाषा ( बोली ) बदल गई है। बुंदेलखंड की हिन्दी एक प्रकार की है ; विहार की दूसरे प्रकार की, और अवध की तीसरे ही प्रकार की । ये भेद कोई भेद नहीं। इन्हें भाषा के भेद न कह कर बोली के भेद कहना चाहिए। यह बात इसी देश में नहीं, और देशों में भी पाई जाती है। ग्रेट ब्रिटेन की भाषा अङ्गरेज़ी है। परन्तु इंगलैंड, स्काटलैंड और आयरलैंड में बोली जानेवाली भाषा में थोड़ा बहुत अन्तर अवश्य है। यह अन्तर कोई अन्तर नहीं। आचार, विचार और स्थिति में अन्तर पड़ने से भाषामें भी अन्तर पड़ जाता है। परन्तु यह समझ कर ही हमको चुप न रहना चाहिए। हमको इसका विचार करना चाहिए कि एक भाषा होने से देश को अधिक लाभ है अथवा अनेक भाषायें होने से अधिक लाभ है।

देश में एक भाषा न होने से सब लोगों में परस्पर प्रीति कभी नहीं उत्पन्न हो सकती। भिन्न भिन्न भाषा बोलनेवाले अपने विचार और अपनी सुख-दुःख की बातें दूसरोंसे नहीं कह सकते। बङ्गालियों को मराठी नहीं समझ पड़ती, पजाबियों को तामील नहीं समझ पड़ती, गुजरातियों को कनारी नहीं समझ पड़ती, और महाराष्ट्रों को बङ्गला भाषा नहीं समझ