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देशव्यापक भाषा



पड़ती। इस लिए ये लोग परस्पर के विचार परस्पर को नहीं समझा सकते, और अपने सुख:दुःख की बातें नहीं कह सकते। और जब तक ऐसा न होगा तब तक महाराष्ट्रों को बँगालियों पर प्रेम न होगा और बँगालियों को महाराष्ट्रों अथवा गुजरातियों अथवा इन प्रान्तों के निवासियों पर प्रेम न होगा । प्रेम और स- हानुभूति उत्पन्न होने के लिए एक दूसरेकी बात समझने की सब से बड़ी आवश्यकता है। एक देश में रह कर भी, भाषा भिन्न होने के कारण हम लोग एक दूसरेसे अपरिचित हो रहे हैं। ए मदरासी जब प्रयाग आता है तब वह समझता है कि वह किसी दूसरी बिलायत को पहुंच गया। इसी प्रकार जब कोई इधरका निवासी रामेश्वर की यात्रा के निमित्त वहां जाता है तो मड्यू रा में प्राय: वही कठिनाइयां उठानी पड़ती हैं जो अमेरिका अथवा जापान जाने से उसे उठानी पड़ती। इसका कारण क्या है ? इसका कारण है यही कि हम सबकी भाषा एक नहीं।

भरतखण्ड-रूपी शरीर के बङ्गाली, मदरासी, महाराष्ट्र, गुजराती, पजाबी और राजपूत आदि अवयव हैं। जैसे शरीर का बल, तेज और आरोग्य अवयवों की सुस्थता पर अवलम्बित रहता है वैसे ही देश का देशत्व उसमें रहनेवालों की परस्पर सहानुभूति और प्रीति पर अवलम्बित रहता है। एक अवयव पर यदि कोई संकट आता है तो सब अवयव उसे टालने का यत्न करते हैं, क्योंकि ये सब एक ही शरीर से सम्बन्ध रहते हैं। इसी नियमानुसार हम सबको चाहिए कि यदि अपने किसी देश-बान्धव पर कोई कष्ट आवे तो हम सब उसके निवारण के