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पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/४३

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साहित्यालाप



भाषा, दूसरी द्राविड़ भाषा । आर्य भाषाओं की उत्पत्ति संस्कृत से है। परन्तु द्राविड़ भाषात्रों की उत्पत्ति संस्कृत से नहीं। जिस समय आर्यों ने इस देश में पैर रक्खा और क्रम क्रम से इसे पादाक्रान्त करते हुए और यहां के प्राचीन निवासियों को हटाते हुए वे गङ्गा यमुना के मध्यवर्ती देश तक पहुँचे, उस समय उनकी भाषा संस्कृत थी। उसके बहुत काल पीछे तक भी उनकी भाषा संस्कृत ही रही। परन्तु ज्यों ज्यों वे आगे बढ़ते गये और ज्यों जजों वे परस्पर एक दूसरे वृन्द से दूर होते गये त्यों त्यों देश और काल के अनुसार उनके व्यवहार में अन्तर होता गया और भाषा भी उनकी बदलती गई। यह अन्तर धीरे धीरे बढ़ता गया। यहां तक कि कुछ दिनों में प्रत्येक वृन्द की भाषा और व्यवहार ने एक नया ही रूप धारण किया। एक दूसरेकी भाषा में इतना भेद हो गया कि उसकी एकरूपता बहुत कुछ नष्ट हो गई । साधारण रीति पर देखने से यह न जान पड़ने लगा कि भिन्न भिन्न लोगों की भाषाओं का मूल एक ही है। परन्तु प्रकृति, प्रत्यय, संज्ञा और क्रिया आदि का विचार करने से यह बात तत्काल ध्यान में आ जाती है कि यद्यपि, प्रत्येक प्रान्त में, इस समय भिन्न भिन्न भाषायें बोली जाती हैं, तथापि सारी आर्य भाषायें संस्कृत ही से निकली हैं। किसी का अधिक रूपान्तर हो गया है, किसाका कम; परन्तु सबका उद्भव एक ही स्थान से है। जिनकी मूल भाषा संस्कृत थी उन आर्यों का प्रधान वृन्द चिरकाल तक उस प्रदेश में रहा जिसमें हम लोग इस समय रहते हैं--- वह प्रदेश जो गङ्गा और यमुना के