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देशव्यापक भाषा



रेगी। अन्यथा नहीं। देश में देशत्व उत्पन्न करने के लिए एक भाषा का होना ही प्रधान साधन समझना चाहिए।

जो भाषा गांव में, नगर में, घर में, सभा-समाज में और राज-दरबार में, सब कहीं, काम आती है वहीं देश-व्यापक भाषा है। हिमालय से लेकर कन्या-कुमारी तक एक ऐसी भाषा नहीं है जिसके द्वारा सब लोगों के विचार प्रकट किये जा सके, जो देश की संचालक शक्ति हो; जिसकी सहायता से प्रजा मात्र के व्यवहार चलें। इस अभाव के कारण हमारी बड़ी हानि हो रही है। यदि यथा-रामय योग्य उपायों के द्वारा यह अभाव दूर कर दिया गया तो हमारी हानि होती ही चली जायगी और बहुत होगी। एक भाषा होने का प्रभाव विलक्षण होता है। बहुत भारी असर होता है। उससे मनुष्यों के हृदय में यह वासना जागृत हो उठती है कि हम सब एक है; यह देश हमारा ही है; इसकी उन्नति के लिए प्रयत्न करना हमारा धर्म है; देश का हित ही हमारा हित है। देश के हित को केन्द्र समझ कर जब सब लोग अपने हित की चिन्तना करते हैं, तभी देश का कल्याण होता है और तभी प्रजा का भी कल्याण होता है। एक भाषा न होने से सजा देशाभिमान कभी नहीं उत्पन्न हो सकता। परस्पर एका कभी नहीं उत्पन्न हो सकता; परस्पर प्रेमभाव भी कमी नहीं उत्पन्न हो सकता। इसीलिए एक देशव्यापक भाषा की परम आवश्यकता है।

व्यापक भाषा होने के लिए हिन्दी की योग्यता ।

इस देश की भाषायें दो भागों में विभक्त हैं। एक आर्य-