पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/५

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वहीं के निवासियों का ध्यान, अपनी इस दुर्व्यवस्था की ओर, पहले पहल गया। फल यह हुआ कि वे लोग अपनी अपनी मातृभाषाओं की उन्नति के लिए दत्तचित्त होने लगे। उनका यह काम दिन पर दिन अधिक परिमाण में बढ़ता गया। अब, इस समय, उन प्रान्तों की भाषायें बहुत कुछ श्रीसम्पन्न हो गई हैं।

इस सम्बन्ध में अपना प्रान्त, संयुक्त प्रदेश, कई अन्य प्रान्तों के मुकाबले में बहुत पीछे रह गया। इसके कारणों में से दो को मुख्य समझना चाहिए। एक तो शिक्षा-प्राप्ति में कमी, दूसरे एक के स्थान में दो भाषाओं या बोलियों का अस्तित्व। यहां दो से मतलब हिन्दी और उर्दू से है। इन प्रान्तों के अधिकांश निवासियों की भाषा है तो हिन्दी, पर गवर्नमेंट ने उसे दाद न देकर उर्दू ही को अपने दफ्तरों और अदालतों में जारी रखने की कृपा की। हिन्दी की अनुन्नति का यह भी एक विशेष कारण हुआ। यह सब होने पर भी, अन्य प्रान्तों की देखादेखी, जब अपने प्रान्त के भी कुछ विचारशील सज्जनों के ध्यान में अपनी भाषा की हीनता आई, तब वे भी सजग हो गये। वे भी उसकी उन्नति के साधन में लग गये। यह कोई ४० वर्ष पहले की बात हुई।

आरम्भ में हिन्दी की ओर हिन्दी-भाषा-भाषियों का ध्यान बहुत धीरे धीरे आकृष्ट हुआ। पर उस आकर्षण की मात्रा बढ़ती ही गई। इस वृद्धि को, "सरस्वती" नामक पत्रिका निकाल कर, प्रयाग के इंडियन प्रेस ने, बहुत अधिक