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देशव्यापक भाषा



बनाना सर्वथा सम्भव है। एक भाषा होने से जो एकता, जो प्रीति और जो सहानुभूति उत्पन्न हो सकती है वह और किसी दूसरे साधन से नहीं हो सकती। अतएव हमारे देशहित-चिन्तक सज्जनों को उचित है कि वे इस विषय का चिन्तन करें, औरों का चित्त इस ओर प्राकर्षित करें, और हिन्दी को देश-व्यापक भाषा बनाने के लिए यथासाध्य प्रयत्न करें। यदि देश भर में एक बार ही एक भाषा न हो सके तो एक लिपि होने में तो कोई विशेष, अनुल्लंघनीय, कठिनताई नहीं जान पड़ती। एक लिपि हो जाने से हिन्दी के ज्ञाता बङ्गला पुस्तकों में भरे हुए ज्ञान-भण्डार का प्रास्वादन कर सकेंगे और बङ्गदेश के रहनेवाले महाराष्ट्र भाषा के साहि य से लाभ उठा सकेंगे। इसी प्रकार गुजराती, तामील और कनारी आदि भाषाओं के ज्ञाता भा परस्पर एक दूसरेके साहिय से अपने ज्ञान की सहज ही में वृद्धि कर सकेंगे। एक लिपि हो जाने से भाषा-सम्बन्धी कठिनाइयाँ बहुत कम हो जाती हैं। यदि दस पाँच शब्दों का अर्थ न भी समझ में आया तो विषय और सन्दर्भ का विचार कर के वाक्य का किंवा लेख का भावार्थ ध्यान में अवश्य ही आ जाता है। एक लिपि हो जाने से दूसरे प्रान्तों की भाषायें सीखने में बहुत दिन नहीं लगते। योरप में एक ही लिपि है । यही कारण है जो थोड़े ही परिश्रम से वहां वाले फ्रेंच,इटालियन, पोर्चुगीज़, इङ्गलिश और जर्मन आदि भाषायें सीख लेते हैं । यदि हमारे देशमें भी एक लिपि हो जाय और पढ़ा लिखे लोग मुख्य मुख्य भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर के एक भाषा हाने