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साहित्यालाप



पढ़े बिना उनका ज्ञान नहीं हो सकता। इन्हीं कारणों से मदरास में संस्कृत का पठन-पाठन पहले से चला आता है। इसके सिवा अब गवर्नमेंट कालेजों में अंगरेज़ी के साथ संस्कृत की भी शिक्षा दी जाती है। अतएव अंगरेज़ी के विद्वान् (नये चाल के मनुष्य ) और हिन्दू-शास्त्रों से परिचय रखनेवाले पुरानी चाल के पण्डित, सभी थोड़ी बहुत संस्कृत भाषा अवश्य जानते हैं। मदरास की ओर संस्कृत के अनेक बड़े बड़े विद्वान् हुए हैं और अब भी हैं। संस्कृत में समाचारपत्र तक वहां से निकलते हैं। संस्कृत और हिन्दी की लिपि एक ही है। हिन्दी में संस्कृत के शब्द भी अनेक हैं। अतएव यदि मदरास में हिन्दी भाषा का प्रचार किया जाय तो उसकी लिपि के पढ़ने में बहुत ही कम कठिनता मनुष्यों को उठानी पड़े। रहा भाषाका शान, सो वह भी वर्ष छः महीने के परिश्रम ही से यदि देश का कल्याण होता हो तो कौन ऐसा अधम होगा जो उस परिश्रम को उठाना न स्वीकार करेगा ?

मराठी की लिपि वही है जो हिन्दी की है। गुजराती और बङ्गला का लिपि भी हिन्दी की लिपि से बहुत कुछ मिलती है। थोड़े ही प्रयत्न से बङ्गला और गुजराती पढ़नेवाले हिन्दी लिख पढ़ सकेंगे। रही तामील और कनारी । सो मदरास में संस्कृत का अधिक प्रचार होने के कारण, यदि सर्वसाधारण को नहीं तो शिक्षित लोगों को तो हिन्दी थोड़े ही समय में साध्य हो सकती है। इससे यह स्पष्ट है कि हिन्दी को देश-व्यापक भाषा