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देशव्यापक भाषा



संस्कृन-लिपि मनुष्यों की उत्पन्न की हुई नहीं ; किन्तु देवताओं की उत्पन्न की हुई है।"

बम्बई के हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस, सर अस्किन पेरी "नोटस टू ओरियंटल केसेज़" ( Notes to Oriental Cases) की भूमिका में लिखते हैं---

“इस एक ही बात से संस्कृत-लिपि की सर्वाङ्गपूर्णता सिद्ध होती है कि उसमें प्रत्येक शब्द का उच्चारण केवल अक्षर देखकर होता है। वर्ण-परिचय होते ही हिन्दुस्तान के लड़के बिना रुके कोई भी पुस्तक पढ़ सकते हैं । उनको चाहे विषय का शान न हो, परन्तु पढ़ने में उनको कोई कठिनता नहीं होती। योरप में पुस्तकों को साधारण रीति पर पढ़ने के लिए लड़कों को दो बर्ष लगते हैं ;परन्तु इस देश में, जहां संस्कृत-लिपि का प्रचार है, तीन ही महीने में लड़के पुस्तकें पढ़ने लगते हैं।

विद्वान् मुसलमानों तक ने देवनागरी लिपि की प्रशंसा की है। शमसुलुल्मा सय्यद अली बिलग्रामी ने लिखा है---

“फारसी लिपि की कठिनता ही के कारण मुसलमानों में विद्या का कम प्रचार है। फ़ारसी लिपि शुद्ध भी नहीं है और देखने में भी अच्छी नहीं है। फ़ारसी अक्षरों में, थोड़ा बहुत लिखना पढ़ना आने में, दो वर्ष लगजाते हैं ; परन्तु देवनागरी लिपि में हिन्दी लिखने पढ़ने के लिए तीन महीने बस हैं।"

सब गुणों से सम्पन्न, सुन्दर, स्पष्ट और सरल देवनागरी लिपि ही में, देश में, हिन्दी भाषा का प्रचार होना चाहिए। हम लोगों को इस लिपि का अभिमान होना चाहिए । और