पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/६८

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५ देशव्यापक लिपि ।

देश में एक भाषा और एक लिपि के प्रस्ताव का सूत्रपात हुए बहुत दिन हुए। इस विषय की आवश्यकता, उपयोगिता और गुरुता पर महाराष्ट्र और गुर्जर देश के कई सुविज्ञ लेखकों ने लेख लिखे हैं । हिन्दी में भी इस विषय से सम्बन्ध रखनेवाले कईएक निबन्ध निकल चुके हैं। उनमें एक भाषा और एक लिपि की आवश्यकता पर बहुत कुछ विचार किया गया है। समाज का जो भाग अधिक उत्साही, अधिक प्रभुतावान् और अधिक विद्या-व्यासङ्गी होता है, उसके प्रस्तावों का-उसकी बातों का-समाज पर अधिक असर पड़ता है। चार भाइयों में जो भाई-चाहे वह सबसे छोटा ही क्यों न हो-अधिक योग्य, प्रतिष्ठित और समाजमान्य होता है उसकी बात अक्सर सब भाई मानते हैं। जो जितना ही अधिक विद्वान है उसकी बुद्धि भी उतनी ही अधिक काम देती है। इन्हीं सब बातों का विचार करके हमने एक दफे सूचना की थी कि यदि बङ्गाली विद्वान इस विषय में अगुआ हों तो कार्य-सिद्धि की अधिक आशा है। हर्ष की बात है, हमारी सूचना व्यर्थ नहीं गई। चाहे यह बात काकतालीय न्याय ही से हुई हो, पर हुई अवश्य। जब से कलकत्ते के हाईकोर्ट के भूतपूर्व जज माननीय शारदाचरण मित्र ने एक प्रबन्ध पढ़ कर