देश में एक लिपि होने का प्रस्ताव किया, तब से इस विषय में कुछ सजीवता आने लगी है।
देश में एक लिपि होने के विषय में माननीय शारदाचरण के प्रस्ताव का अनुमोदन भी हुआ है और विरोध भी। अनुमोदन-कर्ताओं की संख्या अधिक है, विरोधियों की कम । विरोध-कर्ताओं में विशेष करके अगरेज़ हैं। उनकी दलीलों का खण्डन माननीय शारदा बाबू ने बड़ी योग्यता से किया है। इस विषय में उनके कई युक्तिपूर्ण और विद्वत्ता-गर्भित लेख अगरेजी और बंगला मासिक पुस्तकों में निकल चुके हैं। उनके अगुवा होने से इस विषय को अधिक महत्त्व मिला है; उसमें कुछ कुछ प्राणसञ्चार हो पाया है ; उसकी उपयोगिता लोगों के खयाल में आने लगी है। इस विषय का विचार शुरू हो गया । जब विचार होता है तब विवाद भी होता है। विवाद होने से सत्य ही की जीत होती है । और सत्य से लाभ के सिवा हानि नहीं होती। देश भर में एक व्यापक लिपि की आवश्यकता है। यह बात सच है । इससे यदि ऐसी लिपि का प्रचार हो जाय तो अवश्य लाभ हो । इसमें सन्देह नहीं।
योरप में इङ्गलैंड, फ्रांस, स्पेन, जर्मनी, रूस, इटली, स्वीडन
आदि अनेक देश हैं। उन सबकी भाषा अलग अलग है । पर
लिपि सबकी एक है । यही क्यों ? जो लिपि योरप में है वही
अमेरिका में भी है। वही हजारों कोस दूर ऑस्ट्रेलिया और न्यूजी-
लैंड आदि टापुओं में भी है। इसका फल भी प्रत्यक्ष है। एक लिपि में लिखी जानेवाली प्रत्येक भाषा के अनेक शब्दों की