पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६५
देशव्यापक लिपि


उत्पत्ति ग्रीक और रोमन आदि पुरानी भाषाओं से होने के कारण योरप और अमेरिकावाले अपनी भाषाओं के सिवा दो दो चार चार अन्य भाषायें भी सहज ही में सीख लेते हैं। इस तरह अन्य भाषाओं के विद्वानों के ग्रन्थ और लेखों से वे बहुत कुछ लाभ उठाते हैं। इस कारण उनमें परस्पर सहानुभूति और एकता बढ़ जाती है । एक देश में रहने, एक तरह की पोशाक पहनने और एक धर्म को मानने से परस्पर बन्धुभाव अवश्य ही उत्पन्न हो जाता है । परन्तु पारस्परिक सहानुभूति और बन्धुता उत्पन्न करने की, एक लिपि में, इन बातों की भी अपेक्षा अधिक शक्ति है । भिन्न धर्म, भिन्न परिच्छद और भिन्न देश होने पर भी लिपि एक होने से पारस्परिक सहानुभूति जागृत हुए बिना नहीं रहती। जहां किसी तरह की समता होती है वहां ममता ज़रूर उत्पन्न होती है । और ममता से एकता आती है। एकता ही देश का बल है। जहां एकता नहीं वहां बल का सदैव अभाव या अल्पभाव रहता है। और जो समाज निर्बल है-जिसमें एकता रूपी बल नहीं-उसे निर्जीव समझना चाहिए। ऐसे देश का अधःपतन अवश्य होता है, चाहे विलम्ब से हो चाहे अविलम्ब से।

व्यापक भाषा होने के लिए--देश भर में एक भाषा प्रचलित करने के लिए---एक लिपि का होना, कार्य-सिद्धि का अव्यर्थ साधक है। एक भाषा का होना अधिक कष्टसाध्य है। पर एक लिपि का होंना उतना कष्ट-साध्य नहीं। यही समझ कर माननीय शारदाचरण ने व्यापकभाषा की बात छोड़