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पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/७२

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देशव्यापक लिपि
बँगला ... ४,४६,००,०००
मराठी ... १,८२,००,०००
गुजराती ... १,००,००,०००
फुटकर भाषायें ... २,००,००,०००
    ——————
... ९,२८,००,०००
    ——————
कुल... २२,२८,००,०००

अर्थात् तीस करोड़ आदमियों में से सवा बाइस करोड़ आदमी संस्कृत-मूलक भाषा बोलते हैं। शेष पौने आठ करोड़ तामील, तैलंगी आदि ऐसी भाषायें बोलते हैं जो संस्कृत से नहीं निकलीं। अर्थात् आर्य्य-भाषा बोलनेवालों की अपेक्षा अनार्य्य भाषा बोलनेवालों की संख्या सिर्फ़ एक चौथाई से कुछ ही अधिक है। अतएव इन्हीं लोगों को एक लिपि, अर्थात् देवनागरी, स्वीकार करने में विशेष कठिनता पड़ेगी। परन्तु एक लिपि से होनेवाले लाभों का विचार करके इस कठिनता को परिश्रम-पूर्वक हल करलेना इन लोगों का परम कर्तव्य है। आर्य्यभाषा बोलनेवालों में से कोई तेरह करोड़ आदमी देवनागरी लिपि ही को काम में लाते हैं। पञ्जाब में इस लिपि का प्रचार कुछ कम है। पर वहां गुरुमुखी लिपि काम में आती है; वह देवनागरी लिपि ही का अपभ्रष्ट रूपान्तर है। जो लोग अरबी से निकली हुई फ़ारसी लिपि लिखते हैं उनकी संख्या, इस हिसाब को देखते, इतनी ही है जितना दाल में नमक। अतएव इस बात को मान लेने में कोई बाधा नहीं कि तेरह करोड़ आदमी देवनागरी लिपि को काम