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साहित्यालाप


में लाते है। बाकी नौ करोड़ आदमी बँगला, मराठी और गुजराती इत्यादि बोलनेवाले हैं। इसमें से भी प्रायः दो करोड़ मराठी बोलने वालों को छोड़ दीजिए, क्योंकि वे छापने में, और कभी कभी लिखने में भी, देवनागरी ही वर्णमाला काम में लाते हैं। अब सिर्फ़ सात करोड़ आदमी रहे जो थोड़े परिश्रम से देवनागरी वर्णमाला सीखकर उसे लिख पढ़ सकते हैं। इससे यह सिद्ध हुआ कि कोई पन्द्रह करोड़ आदमी देवनागरी लिपि इस समय भी लिखते हैं और कोई सात करोड़ थोड़े ही परिश्रम से उसे सीख सकते हैं। शेष आठ करोड़ आदमियों को उसे सीखने के लिए अधिक परिश्रम करना पड़ेगा। इसमें मुसल्मानों की भी संख्या शामिल है। उसे निकाल डालने से पिछले प्रकार के आदमियों की संख्या और भी कम हो जायगी।

गुजरात में जो लिपि काम में आती है उसे बने अभी सौ वर्ष भी नहीं हुए ; यह एक गुजराती विद्वान् का मत है। देवनागरी और गुजराती लिपि में बहुत ही कम अन्तर है। देवनागरी लिपि को, दो तीन दिन, कुछ देर तक ध्यानपूर्वक देखने से, यह अन्तर मालूम हो सकता है और बहुत थोड़े अभ्यास से गुजराती लिपि जाननेवाले देवनागरी पढ़ सकते हैं गुजरात में जितनी संस्कृत की पुस्तकें प्रचलित हैं वे प्रायः देवनागरी ही में हैं। पुस्तकों और समाचारपत्रा में प्रमाणस्वरूप जहां कहों संस्कृत के वाक्य या श्लोक देने पड़ते हैं वहां वे प्रायः देवनागरी ही लिपि में दिये जाते हैं। फिर,