करने से अधिक से अधिक एक हफ्ते में बँगला-लिपि को
अच्छी तरह सीख सकते हैं। और बँगला जाननेवाले देवनागरी लिपि को उससे भी कम समय में जान सकते हैं। फिर, बङ्गाल में संस्कृत के बहुत से ग्रन्थ देवनागरी ही में छपते हैं । अतएव बङ्गवासियों के समुदाय का कुछ अंश इस लिपि से पहले ही से परिचित है। जो नहीं है वह भी बहुत थोड़े परिश्रम से परिचय-प्राप्ति कर सकता है। इससे आशा है कि विचारशील बङ्गवासी माननीय शारदाचरण मित्र के देशव्यापक-लिपि-विषयक प्रस्ताव को स्वीकार करके नागरी लिपि के प्रचार में अवश्य दत्तचित्त होंगे। सुनते हैं, इस परमावश्यक प्रस्ताव के फलवान होने का चिह्न भी शीघ्र ही देखने को मिलेगा। कलकत्ते के "इण्डयन मिरर" नामक
समाचारपत्र ने लिखा है कि “देवनागरी विस्तारक परिषद्" नाम की एक सभा शीघ्र ही बननेवाली है। वह एक पत्र या सामयिक पत्रिका निकालेगी जिसमें हिन्दी, बङ्गला, गुजराती,मराठी और तैलंगी भाषाओं में लेख रहेंगे। पर लिपि सब की नागरी ही रहेगी। यह सभा एक देवनागरी परीक्षा भी जारी करेगी और जो बँगाली लड़के उसमें “पास" होंगे उनको सोने और चांदी के तमगे और प्रशंसापत्र भी देगी। बहुत ही अच्छा विचार है । एवं भवतु ! तथास्तु!
हमारी समझ में कलकत्ते से पांच भाषाओं में पत्र निकालने से कम लाभ होगा। जिस प्रान्त का जो पत्र होता है उसी में अक्सर उसका अधिक प्रचार होता है। अतएव ऐसे पत्र