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देशव्यापक लिपि



से विशेष करके बड़्गालियों ही को अधिक लाभ होने की सम्भावना है । और एक ही साथ कई भाषायें सीखना जरा कठिन भी है। इससे यदि प्रत्येक प्रान्त में प्रान्तीय भाषा के साथ साथ सिर्फ़ हिन्दी भाषा में कोई पत्र या पत्रिका निकले और लिपि दोनों की नागरी हो तो विशेष लाभ हो। इससे नागरी लिपि सीखने में तो सुभीता होहीगा। उसके साथ हिन्दी भाषा सीखने में भी सहायता मिलेगी। अतएव एक लिपि का प्रचार हो जाने पर कुछ काल में एक भाषा के प्रचार का मार्ग भी प्रशस्त हो जायगा। एक लिपि के प्रचार के लिए गवर्नमेंट से सहायता पाने की पहले ही से इच्छा रखना व्यर्थ है । यदि सर्व साधारण की प्रवृत्ति इस तरफ़ हुई और इस लिपि का प्रचार थोड़ा बहुत होगया तो, उस समय, प्रारम्भिक शिक्षा की पुस्तकों को नागरी लिपि में छपवाने के लिए गवर्नमेंट से प्रार्थना करना असामयिक न होगा। यदि गवर्नमेंट को मालूम हो जायगा कि लोग इस लिपि को चाहते हैं और उसका प्रचार भी हो चला है तो वह शायद इस प्रार्थना को मान ले। इस दशा में इस लिपि के सार्वदेशिक होने में कोई सन्देह न रह जायगा।

इस देश की और भाषाओं की अपेक्षा बँगला भाषा इस समय अधिक उन्नत है । इससे बङ्गालियों को अपनी लिपि को सहसा बदल डालने में सङ्कोच होना स्वाभाविक है । पर समाज-हित भी कोई चीज है । देश-कल्याणचिन्ता भी कोई वस्तु है । देश के शुभचिन्तक अपना शरीर और सर्वस्व तक