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साहित्यालाप


हीनञ्च दूषयत्येव हिन्दुरित्युच्यते प्रिये।

मेरुतन्त्र, २३वां प्रकाश ।

अर्थात् हीन लोगों पर जो दोषारोपण करे उसे हिन्दू कहते हैं। यह अर्थ भी हमारे पूर्वोक्त अर्थ से प्राय: मिलता है । भेद इतना ही है कि यहां पर हिंसक अर्थ न लेकर हीन अर्थ लिया गया है। फ़ारसी भाषा में 'हिन्दू' शब्द जो काले के अर्थ में व्यवहृत होता है वह मुसल्मानों की कृपा का फल है।

व्याकरण से जब 'हिन्दू' शब्द सिद्ध हो गया तब हिन्दुओं की भाषा 'हिन्दी' आप ही सिद्ध हो गई। उसके पृथक् सिद्ध करने की आवश्यकता न रही। तथापि वह एक दूसरे प्रकार से भी सिद्ध हो सकती है। यथा-'हिन्दू' शब्द से, स्त्रीलिङ्ग में तद्धित प्रत्यय करने से 'हैन्दवी' शब्द हुआ। उसके अपभ्रंश 'हिन्दवी','हिँन्दुई' और 'हिँदुई' हुए। 'हिंँदुई' तो अब तक कहीं कहीं बोला जाता है। होते होते इसी 'हिंँदुई' का 'हिन्दी हो गया।

इस देश में बोली-जाने-वाली भाषायें दो बड़े बड़े भागों में विभक्त हैं—एक आर्य भाषा, दूसरी द्राविड़-भाषा।

द्राविड़ भाषाओं में कनारी, तामिल, तैलंगी और मलायालम्मु ख्य हैं। ये भाषायें मदरास की और बोली जाती हैं। जहां से आर्य भाषा की उत्पत्ति है वहां से, द्राविड़ भाषा की उत्पत्ति नहीं, इसीलिए आर्य और द्राविड़ ये दो विभाग करने पड़े।

भाषा के मुख्य सात विभाग हो सकते हैं। यथा-हिन्दी, पज्जाबी, सिन्धी, गुजराती, मराठी, उड़िया और बँगला।