इनके अतिरिक्त और भी कई विभाग किये जा सकते हैं, परन्तु
वे विभाग गौण हैं और इन्हीं सातों के अन्तर्गत आ जाते हैं। इन सातों भाषाओं में हिन्दी सबसे प्रधान है। पूर्व में गण्डक नदी से लेकर पश्चिम में पञ्जाब तक, और उत्तर में कमायू से लेकर दक्षिण में विन्ध्याचल पर्वत के भी उस पार तक की प्रचलित भाषा हिन्दी ही है। सच तो यह है कि हिन्दी बोलने-वालों की सीमा नहीं बांधी जा सकती। वह देश-व्यापक भाषा है। उसके बोलने और समझनेवाले किस प्रान्त में नहीं ?
आदि में इस देश की भाषा संस्कृत थी। विद्वानों का अनुमान है कि आज से कोई २५०० वर्ष पहले सर्वसाधारण के बोलचाल में इस भाषा का प्रयोग उठ गया। उसके अनन्तर प्राकृत भाषाओं का प्रचार हुआ। जो प्रकृति-स्वभाव से उत्पन्न हो उसे प्राकृत कहते हैं । अर्थात् ये प्राकृत भाषायें स्वाभाविक रीति पर, आप ही आप, संस्कृत से उत्पन्न हो गई थीं। इन प्राकृत भाषाओं के कई भेद हैं। उनमें महाराष्ट्री, सौरसेनी, मागधी अर्थात् पुरानी पाली, पैशाची
और अपभ्रंश ये पांच मुख्य हैं। यद्यपि संस्कृत का बोलचाल उठ गये हज़ारों वर्ष हुए, तथापि विद्वान लोग अपने ग्रन्थ इसी भाषा में लिखते रहे और अब तक भी लिखते हैं। संस्कृत भाषा के प्रवीण पण्डित इसे, समय पड़ने पर, बोलते भी हैं। परन्तु गौतम बुद्ध ने सर्वसाधारण को अपने उपदेश प्राकृत ही में दिये। बौद्ध-सम्प्रदाय के ग्रन्थ