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साहित्यालाप

भी प्राकृत ही में हैं। जो प्रजामात्र की भाषा हो उसीमें उपदेश देना और उसीमें ग्रन्थ लिखना हितकर होता भी है। इस समय, हमारी भाषा हिन्दी है। अतएव विचारने की बात है कि यदि देहली दरबार का वृत्तान्त संस्कृत में लिखा जाय तो वह कितना लाभकारी होगा और उसे कितने लोग समझ सकेंगे?

हिन्दी भाषा में कई प्राकृत भाषाओं के बीज हैं, परन्तु विशेष करके वह सौरसेनी से उत्पन्न हुई है। प्राचीन समय में मथुरा और उसके आसपास का प्रदेश 'सूरसेन' कहलाता था। इसी प्रदेश की भाषा का नाम सौरसेनी था। स्वाभाविक रीति पर फेरफार होते होते इसी सौरसेनी से हिन्दी उत्पन्न हुई और क्रम क्रम से वह रूप प्राप्त हुआ जिस रूप में हम उसे, इस समय, देखते हैं। प्राकृत भाषाओं में भी अनेक शब्द संस्कृत के विद्यमान थे। उनमें से अनेक शब्द हिन्दी में भी वैसे ही बने हुए हैं और प्रतिदिन बोलचाल में आते हैं। उदाहरणार्थ, माता, पिता, पुत्र, कवि, पण्डित, क्रोध, लोभ, मोह, इत्यादि। बहुत शब्द प्राकृत के भी अपने पूर्व-रूप में बने हुए हैं, परन्तु विशेष करके वे परिवर्तित रूप में पाये जाते हैं। प्राकृत के परिवर्तित शब्द अनेक हैं। उदाहरण के लिए हम, यहां दो चार शब्द लिखते हैं:—

हिन्दी प्राकृत संस्कृत
काम कम्म कर्म्म
कान कण्ण कर्ण