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साहित्यालाप


उनको बोलते हैं। इससे यह सिद्ध हुआ कि यह हमारी हिन्दी संस्कृत, प्राकृत, अरबी, फ़ारसी, तुर्की, पोत्तुगीज़ और गरेज़ी आदि भाषाओं की खिचड़ी है। ऐसा होना कोई लज्जा,अथवा हानि, अथवा दोष की बात नहीं। प्राकृतिक नियमों के अनुसार, सम्पर्क से, भाषाओं में परिवर्तन हुआ ही करता है। इस जगत् में ऐसी एक भी भाषा न होगी जिसने किसी अन्य भाषा का एक भी शब्द न ग्रहण किया हो।

कोई कोई हिन्दी को नागरी कहते हैं। यह उनकी भूल है। नागरो कोई भाषा नहीं। नागरी एक लिपि विशेष का नाम है। नागर अक्षरों में जो लिपि लिखी जाती है उसे नागरी कहते हैं। नागरी अक्षरों में हिन्दी, फारसी, बङ्गला,गुजराती इत्यादि सभी भाषायें लिखी जा सकती हैं। अतएव यह स्मरण रखना चाहिए कि हिन्दी एक भाषा का नाम है और नागरी एक लिपि का।

हिन्दी-साहित्य का काल-निर्णय करने के विषय में हिन्दी लेखकों में कई बार वादविवाद हुआ है। इस प्रकार के वाद-विवाद से हम कोई विशेष लाभ नहीं देखते। यह एक अत्यन्त गौण विषय है। मुख्य विषय साहित्य की उन्नति करना है। हिन्दी का साहत्य बड़ी ही दुरवस्था को प्राप्त हो रहा है। उसकी अभिवृद्धि करने की इच्छा से अच्छे अच्छे ग्रन्थ लिखना इस समय अत्यावश्यक है। हिन्दी बोलनेवालों का यह परम धर्म है। काल-निर्णय के सम्बन्ध में शुष्क विवाद करते बैठना व्यर्थ काल-क्षय करना है।