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पृष्ठ:साहित्य का इतिहास-दर्शन.djvu/१८

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अध्याय ९
इतिहास-दर्शन : पाश्चात्य आदर्श

इस शताब्दी के आरंभ में–१९०३ में–जे॰ बी॰ बेरी नामक विद्वान् ने अपने एक भाषण में बड़ी दृढ़ता के साथ यह सिद्धांत प्रतिपादित किया था—'इतिहास एक विज्ञान है, उससे न कुछ कम न कुछ ज्यादा।' इसका तीव्र विरोध तुरत ही दो दिशाओं से हुआ : भूतजगत् के अध्येता प्राकृतिक दार्शनिकों[] का उत्तर था कि इतिहास विज्ञान से बहुत कम है, और साहित्यिकों का कहना था कि वह विज्ञान से बहुत अधिक है।

आलोचकों के पहले वर्ग का तर्क था कि विज्ञान की आधारभूत सामग्री. के विपरीत इतिहास की सामग्री अनिश्चित और अनिर्धारणीय होती है; इतिहास के तथाकथित तथ्य का प्रत्यक्ष निरीक्षण नहीं हो सकता; प्रयोग संभव नहीं हैं। प्रत्येक ऐतिहासिक घटना अपने ढंग की एक अकेली होती है और किसी भी स्थिति में उसको पुनरावृत्त नहीं कराया जा सकता; अतः, इसके परिणामस्वरूप, घटनाओं का न तो निश्चित वर्गीकरण किया जा सकता है, न इतिहास के सामान्य सिद्धांतों या नियमों का ही उद्भावन किया जा सकता है; इतिहास की सामग्री अपेक्षया जटिलतर होती है। इतिहासकारों में इस बात को लेकर ऐकमत्य नहीं है कि क्या महत्त्वपूर्ण है और क्या गौण; इतिहास में आकस्मिकता का तत्त्व ऐसा है, जो सारे हिसाब-किताब को झूठ सिद्ध कर देता है और भविष्य-कथन असंभव हो जाता है; और सर्वोपरि है व्यक्ति का अस्तित्व और उसके स्वेच्छाकृत प्रयास, जिनके कारण इतिहास को वैज्ञानिक भित्ति पर स्थापित करने की चेष्टा विफल ही क्यों, हास्यास्पद सिद्ध होती है।

इसके प्रतिकूल साहित्यकारों का कहना था कि इतिहास विज्ञान हो या न हो, बह कला जरूर है । विज्ञान अधिक-से-अधिक इतिहास का कंकाल ही प्रस्तुत कर सकता है; उसमें प्राण-प्रतिष्ठा करने के लिए कवि की कल्पना आवश्यक है; और जब कंकाल एक बार सजीव हो जाता है तो उसे सुरुचिपूर्ण परिधान देने और प्रभावशाली बनाने के लिए कुशल लेखक की निपुणता की जरूरत होती है । वैज्ञानिक को मनोराग-रहित निस्पृहता इतिहास के लिए अपर्याप्त और अवांछनीय है, क्योंकि उसका विषय है चैतन्य मनुष्यों का क्रिया-कलाप । प्रसिद्ध इतिहासकार जी॰ एम॰ ट्रेवेल्यन के अनुसार "जो आदमी खुद ही मनोराग और उत्साह से रहित है, वह दूसरे के मनोरागों पर शायद ही कभी विश्वास कर सकेगा, उन्हें समझ तो वह कभी नहीं सकेगा।"

इस तरह जो त्रिकोणात्मक गत्यवरोध उत्पन्न हो गया वह आज भी दूर नहीं हुआ है । किंतु इस विवाद से एक तथ्य उत्थित हुआ है और वह यह कि इस गत्यवरोध के कारण

  1. संदर्भ देना बाकी है