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साहित्य का इतिहास-दर्शन

घटनाओं का। इस अर्थ में मनुष्य जो भी कार्य करते हैं, दुःख भोगते है, निर्माण और ध्वंस करते हैं, वे सभी ऐतिहासिक अन्वेषण के अंतर्गत हैं।

चतुर्थ प्रश्न है, ऐतिहासिक अन्वेषण का लक्ष्य क्या है? उत्तर संकेतित हो चुका है वर्तमान का समाधान और व्याख्या। जिस सामग्री का भी विवेचन इतिहास में होता है, वह वर्तमान सामग्री ही होती है। जो नितांत गत और अतीत है, वह इतिहास के लिए विचारणीय नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त यह भी है कि ऐतिहासिक अन्वेषण जिस युग में होता है उसके भाव और रुचि के अनुरूप ही यह हो सकता है : कोई इतिहासकार अपने को अपने वातावरण से अलग नहीं कर सकता। ऐसा करने का प्रयास उचित भी नहीं है। अपना तथा अपने वातावरण का ज्ञान प्राप्त करना ही तो उसका ध्येय होता है । जैसा कि क्रोचे ने कहा है, समस्त इतिहास समकालीन इतिहास होता है, और सभी सच्चे इतिहासकार, वे चाहे या न चाहें, दार्शनिक होते हैं।

अंतिम प्रश्न यह है कि विज्ञान के रूप में इतिहास की प्रक्रियाएँ क्या है। इसका प्रथम कार्य है प्रामाणिक तथ्यों का संकलन। किंतु चूंकि तथ्य असंख्य होते है और सभी का कुछ न कुछ महत्त्व होने पर भी उनमें से अधिकांश अत्यल्प महत्त्व के होते हैं, इसलिए उन्हें बुनने का कोई सिद्धांत आवश्यक है। इस सिद्धांत के संबंध में मतैक्य नहीं है। पुराने इतिहासकारों को वे तथ्य अधिक आकृष्ट करते थे, जो असाधारण, नाटकीय और उदात्त होते थे। आधुनिक वैज्ञानिक इतिहासकार अपरिसीम तथ्यों में से उन्हें ही चुनता है जो, उसकी दृष्टि में, वर्तमान मानव-समाज के विकास के समाधान और परिज्ञान के लिए सहायक सिद्ध हो सकते है। अवशेषों से तथ्य-संकलन कर सकने के लिए यह आवश्यक है कि इतिहासकार भाषा-विज्ञान, लिपि-विज्ञान आदि का प्रशिक्षण प्राप्त किये हो।

जब इतिहास के लिए तथ्यों का कच्चे माल का-संकलन हो जाता है तो विवेचन की प्रक्रिया शुरू होती है। अब अतीत के अवशेषों के साक्ष्य की समीक्षा इसलिए आवश्यक होती है कि उनकी प्रामाणिकता और विश्वसनीयता निर्धारित की जा सके।

इतिवृत्त के समन्वयात्मक निर्माण के पूर्व जो तीसरी और अंतिम प्रक्रिया है, वह है अवबोधन की, जो कठिनतम होती है। इसमें ऐसी वैज्ञानिक कल्पना की आवश्यकता पड़ती है, जो ऊँची-से ऊँची उड़ान ले सके और फिर भी सत्य की सीमा में नियंत्रित रहे। भारतीय इतिहास के ही नहीं, यूरोपीय इतिहास के ही अनेक युगों के लिए (विशेषतः ईसाई धर्मावलम्बी यूरोप के प्रारंभिक मध्य-काल के लिए) लिखित तथा अन्य प्रकार के अवशेष इतने कम है, लेखकों का अंधविश्वास और कपोल-कल्पना ऐसी है, आधुनिक काल की तुलना में लोगों के विचार और जीवन की प्रणालियाँ इतनी भिन्न थीं कि सहानुभूतिशील कल्पना-शक्तिरिमौर हृदय दोनों के गुण-अवबोधन के लिए आवश्यक है।

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सामान्यतः द्रष्टव्यः

E. Fueter, Gesch. d. neuren Historiographie, म्यूनिस, १९११, E, Bernbein, Lebruch d. historischen Methode, लाइपजिग, १९०८; W. Dilthey, Einleit..