पृष्ठ:साहित्य का इतिहास-दर्शन.djvu/३६

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३५९ वाचस्पति-क०; न० । ३६०। वाच्छोक या वाछोक या वाञ्छोक; न० । · ३६१। वाञ्छाक–उपरिवत्; न० । ३६२। वातोक–क०; न० । ३६३। वापीक-न० । ३६४। वामदेव-० । ३६५ । वामन–सू०; काश्मीरनरेश जयापीड ( ७७६-८१३ ई०) के मंत्रियों में से एक, काव्या- लंकारसूत्रवृत्ति के रचयिता के रूप में प्रमाणित करने का भी प्रयत्न किया गया है। ३६६। वार्तिककार-पीटरसन के अनुसार वररुचि, आफूख्त के मत में कुमारिलभट्ट | ३६७॥ वासुदेव न० । ३६८। वासुदेव सेन––न० । ३६९। वासुदेव ज्योति – न० । ३७०। वाहूटन० । ३७१। विकटनितम्बा–क०; राजशेखर द्वारा उल्लेख । ३७२ | विक्रमादित्य — कुछ विद्वानों के अनुसार छठीं शताब्दी के । ३७३ विज्ञातात्मा–सु०; शा०; न० । ३७४ । वित्तपाल सु०; न० । ३७५। वित्तोक–क०; न० । ३७६ विद्या, विद्याका, विज्जा या विज्जाका – क० ; शा० ; सु०; न० | ३७७॥ विद्यापति–सु०; शा०; कर्ण नामक राजा के समकालीन । ३७८ विधूक न० । ३७९| विनयदेव – क०; न० । ३८० विभाकर या विभाकर शर्मा-सु०; सू०; न० । ३८१। विभोक – शा०; न० । ३८२ | विरिञ्चि न० । अध्याय ३ ३८३ ३८४ | विश्वेश्वर न० । विशाखदत्त सु०; सू०; मुद्राराक्षस के रचयिता, प्रसिद्ध । ३८५। विष्णुहरि न० । ३८६ वीरन० । ३८७ वीरदत्त न० । ३८८ वीरभद्र न० । ३८९ वीरसरस्वती न० । ३६०। ३९१ २३ ३६२॥ वेतोक-न० 1 ३६३ वेशोक - ० । ३९४) वैद्यधन्य – क०; न० । वीर्यमित्र —–क०; सु० सू०; न० । वेताल —वेतालभट्ट से भिन्न, वंगीय कवि ; क्योंकि श्रीघरदास के पिता वटुदास की स्तुति करते हैं ।