पृष्ठ:साहित्य का इतिहास-दर्शन.djvu/३७

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२४ ३६५। ३९६ । ३६७। ४०० ४०१ । वैनतेय न० । व्याडि——आफ्रेख्त चार व्याडियों का उल्लेख करते हैं; न० । (कविराज) व्यास -- श्रीधरदास के पिता वटुदास की स्तुति करते हैं, अतः सेनवंश के समय के कवि । ३६८ (श्री) व्यासपाद – सू०; न० । ३६६। शकटीयशबर-न० । शङ्कर न० । शङ्करदेव –––न० । ४०२॥ शङ्करघर-न० । ४०३ शङ्कार्णव-न० । ४०४॥ शधोक-न० । ४०५। शतानद क०; सु०; सू०; शा०; न० । ४०६ | शब्दार्णव-क०; कदाचित् पूरा नाम शब्दार्णव वाचस्पति । ४०७ । शरण, शरणदेव या चिरन्तनशरण – जयदेव समकालीन के रूप में उल्लेख करते हैं । ४०८ शर्व न० । ४०६। साहित्य का इतिहास दर्शन शाक्यरक्षित न० । ४१०। शाटोक–० । ४११॥ शाडिल्य–सु०; शा०; न० | ४१२ शान्त्याकर न० । ४१३। शालवाहन कुछ विद्वानों के अनुसार शकाब्द-संस्थापक ; न० | ४१४। शालिकनाथ -न० । ४१५। शालूक न० ४१६॥ शिल्हूण-सु०; शा०; काश्मीरनिवासी; शान्तिशतक के रचयिता । ४१७॥ शिवस्वामी–क०; काश्मीरनरेश अवन्तिवर्मा (८५५८८४ ई०) के समकालीन | ४१८ । शिशोक-न० । ४१९ शीलाभट्टारिका —–सु०; सू०; शा०; संभवत ११वीं शताब्दी के भोज की सम- सामयिक । ४२० शुक्षोक संभवतः शुङ्गोक; न० । ४२१॥ शुङ्गोकन० ४२२ शुभाङ्क न० । ४२३। शूद्रक—–सु०; मृच्छकटिक के रचयिता प्रसिद्ध, कुछ विद्वान् इनके अस्तित्व में संदेह करते हैं और मानते हैं कि मृच्छकटिक भास के चारुदत्त का रूपांतर मात्र है और शूद्रक का नाम कल्पित है । ४२४ | शूल न० । ४२५ शूलपालिन० । ४२६ । शृंगार क० : न० । ४२७॥ शैलसवंश न० ।