अध्याय ४ यंदहिं । चउमुंह अवर सयंभु पुष्फयंत भूवाल पहाणहिं 1 अवरोहि मि वहु सत्य वियाणहिं । विरइयाइं कव्वई णिसुणेप्पिणु । अम्हारिसह न रंजइ बुह यणु । हउ तहावि धिट्ठ पयासमि । सत्थ रहिउ अप्पउ आयासमि । ३१ बहुधा अपेक्षाकृत बाद के कवि पहले के कवियों की बहुत बड़ी नामावली प्रस्तुत करने की स्थिति में पाये जाते हैं। उदाहरणार्थ, अपभ्रंश के उत्तरकाल के कवि धनपाल के बाहुबलि- चरित" खंड-काव्य की यह सूची है, जिसमें "कवि नो अपने से पूर्वकाल के अनेक दर्शन, व्याकरणादि के विद्वानों का और कवियों का उल्लेख किया है। विद्वानों और कवियों के नामो- ल्लेख के साथ-साथ उनमें से अनेक के ग्रंथों का भी संकेत किया है " :- वाएसरि कीला सरय वांस, हुअ आसि महाकइ भुणि पयास । सुअ पवणु, ड्डाविय कुमयरेणु कइ चक्कवट्टि सिरि धीरसेणु । महिमंडलि वण्णिउं विवुह विंदि, वायरण कारि सिरि देवणंदि । जइगेंद णामु जउ यण दुलक्खु, किउ जेण पसिद्धु सवाय लक्खु । सम्मत्तारु बुसु राय भव्वु, दंसण पमाणु वरु रयउ कव्बु । सिरि वज्ज सूरि गणि गुण णिहाणु, विरइउ मह छद्दसण पमाणु । महसेण महामइ विउ समहिउ, घण णाय सुलोयण चरिउ कहिउ । रविसेणे पउम चरितु वृत्तु, जिणसेणे हरिवंसु वि पवित्तु । मुणि जडिलि जडत्तणि वारणत्थु, णवरंग चरिउ खंडणु पयत्थु । दिणयरसेणें कंदप्प चरिउ, वित्थरिउ महिहि णवरसहं भरिउ । जिण पास चरिउ अइसय वसेण, विरइउ मुणि पुंगव पउमसेण । अमियाराहण विरइय विचित्त, गणि अंवरसेण भवदोस चत्त । चंदप्पह चरिउ मणोहि रामु, मुणि विल्हुसेण किउ धम्म धामु । धणयत्त चरिउ चउवग्गसारु, अवरोहिं विहिउ णाणा पयारु । मुणि सीहणंदि सद्दत्थ वासु, अणुपेहा कय संकप्प णासु । णव यारणेहु णरदेववृत्तु, कइ असग विहिउ वीरहो चरित्तु । सिरि सिद्धि सेण पवयण विणोउ, जिणसेणें विरइड आरिसेउ । गोविंदु कइंदे सणकुमारु, कह रयण समुद्दहो लद्धयारु जय धवल सिद्ध गुण मुणिउंमेड, सुय सालिहत्थु कइ जीवदेउ । वर पउम चरिउ किउ सुकइ सोढि, इय अवर जाय धरवलय पीढे । उहुँ दोणु सयंभु कइ, पुप्फयंतु पुणु वीरु भणु i तेणाण दुमणि उज्जोय कर, हउ दीवो वमु हीणु गुणु ॥ कथा-विशेष के स्रोतों के अध्ययन की नवीन परिपाटी प्राचीन काल में किस प्रकार पूर्वाशित हुई है, इसका अपभ्रंश साहित्य में बहुत ही अच्छा उदाहरण मिलता है । देवसेन
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