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पृष्ठ:साहित्य का इतिहास-दर्शन.djvu/८८

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अध्याय १३
हिंदी साहित्य का इतिहास-दर्शन
(१)

हिंदी साहित्य का पहला इतिहास-लेखक गार्सां द तासी था, यह निर्विवाद है। उसका ग्रंथ, Historie de la Literature Hindoui Hindustanee फ्रेंच भाषा में लिखा गया था और इसमें मुख्यतः हिंदू-उर्दू कवियों के विवरण हैं, यद्यपि इनसे इतर भाषाओं के कवियों का भी यत्र-तत्र उल्लेख मिलता है। इसके प्रथम संस्करण का प्रथम भाग १८३९ में प्रकाशित हुआ था और दूसरा १८४७ में। पुस्तक का दूसरा और परिवर्धित संस्करण १८७०-७१ में प्रकाशित हुआ था। दोनों संस्करणों की भूमिकाओं आदि के साथ इस पुस्तक के 'हिंदुई' वाले अंश का हिंदी अनुवाद लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय[] ने किया है।

अनुवादक की धारणा है कि "प्रस्तुत अनुवाद उनके (तासी के) ग्रंथ में से हिंदुई से संबंधित अंश का सर्वप्रथम अनुवाद है। उनके इस ग्रंथ का पूर्ण या आंशिक अनुवाद न तो अँगरेजी में है और न अन्य किसी भारतीय भाषा में।" इस धारणा का खंडन करते हुए महादेव साहा और श्रीनारायण पांडेय[] ने अपने एक लेख में इस नवीन तथ्य का उद्घाटन किया है कि फैलन और करीमुद्दीन १८४८ में ही तासी की पुस्तक के प्रथम संस्करण का उर्दू में अनुवाद किया था, और वस्तुतः तासी ने अपनी पुस्तक के दूसरे संस्करण में इस अनुवाद से अपना परिचय भी प्रकट किया है। फैलन और करीमुद्दीन ने ग्रंथ के मुख-पृष्ठ पर के वक्तव्य में पुस्तक को 'A History of Urdu Poets' तो कहा है, पर उन्होंने अनेक हिंदी कवियों के भी विवरण दिये हैं और अपनी ओर से नई बातें जोड़ी हैं।

तासी की पुस्तक का महत्त्व बहुत कुछ इसी कारण है कि वह हिंदी का सर्वप्रथम साहित्यिक इतिहास है। तासी का कवि-वृत्त काल-क्रमानुसारी न होकर वर्णक्रमानुसारी है और लेखक ने साहित्यिक प्रवृत्तियों आदि का निरूपण नहीं किया है, "यद्यपि जैसा कि उनकी भूमिका से ज्ञात होता है, वे इस क्रम से अपरिचित नहीं थे और कुछ व्यावहारिक कठिनाइयों के कारण ही वे ऐसा करने में असमर्थ रहे।"[] वास्तविकता यह है कि परवर्त्ती शिवसिंह सरोज की तरह तासी की पुस्तक में विवरण की प्रधानता तो है, किंतु एकाधिक दृष्टियों से साहित्य के विभिन्न रूपों के वर्गीकरण का भी यत्किंचित् प्रयास अवश्य है। उदाहरणार्थ, तासी कहता है—"हिंदी रचनाएँ चार भागों में विभाजित की जा सकती हैं। (१) आख्यान, (२) आदि काव्य, (३) इतिहास, (४) काव्य।"[] इसी प्रकार पद्य-प्रकारों का यह वर्गीकरण भी महत्त्व का अधिकारी है, जिसमें इनका उल्लेख है—अभंग, आल्हा, कड़खा, कबित या कबिता, कहा, मलार,

  1. १। हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद, १९५३ ।
  2. २। 'हिंदी साहित्य का एक प्राचीन इतिहास', कल्पना, अक्तूबर, १९५६ ।
  3. ३। वार्ष्णेय, 'अनुवादक की ओर से', पृ॰ ख ।
  4. ४। उपरिवत्, भूमिका, पृ॰ २०, ६३ ।