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साहित्येतिहास के क्षेत्र में हिंदी में पहला प्रयास शिवसिंह कृत 'सरोज' नामक वृत्त-संग्रह माना जाता रहा है। उसका प्रकाशन १८८३[१] में हुआ और उसमें एक सहस्र कवियों का संक्षिप्त परिचय तथा उनकी रचनाओं के उदाहरण हैं। भक्तमाल आदि प्राचीन भक्त-चरितों तथा काव्य-संग्रहों के अतिरिक्त, माताप्रसाद गुप्त शिवसिंह सेंगर के पूर्व की प्रायः दस कृतियों का उल्लेख 'साहित्य का इतिहास-तत्कालीन' के अंतर्गत करते हैं।[२] रामकुमार वर्मा ने 'सरोज' के पूर्व की और दो कृतियों का उल्लेख किया है—महेशदत्त का काव्य-संग्रह तथा मातादीन मिश्र का कवित्त-रत्नाकर।[३] वस्तुतः 'सरोज' के अतिरिक्त अन्य ग्रंथों में प्रायः उदाहरण ही मिलते हैं, यद्यपि कुछ में कवियों के जीवन-चरित भी प्राप्य हैं। 'सरोज' का महत्त्व प्राचीनता तथा परिमाण दोनों दृष्टियों से है।
जहाँ तक साहित्येतिहास के रूप में सरोज के महत्त्व का प्रश्न है, यह ग्रंथ सही अर्थ में कवि-वृत्त-संग्रह भी नहीं कहा जा सकता, साहित्यिक इतिहास तो दूर की बात है। क्योंकि कवियों का जन्म-काल आदि के संबंध में जो विवरण हैं, वे भी अत्यंत संक्षिप्त और बहुधा अनुमान पर आश्रित हैं। फिर भी इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि ग्रियर्सन ने 'Modern Vernaculer Literature of Northern Hindustan'[४] में 'सरोज' को ही आधार बनाया है, और इसके अभाव में मिश्रबंधुओं को 'विनोद' तैयार करने में काफी कठिनाई होती।
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