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साहित्य का इतिहास-दर्शन

कवि की जन्म-तिथि ही सर्वत्र देते हैं, जब कि अनेक बार ये तिथियाँ उक्त कवियों के प्रमुख ग्रथों के वस्तुतः रचनाकाल हैं। फिर भी सरोज की तिथियों का कम-से-कम इतना मूल्य तो है कि किसी अन्य प्रमाण के अभाव में हम पर्याप्त निश्चित रहें कि प्रसंग-प्राप्त कवि उस तिथि को, जिसको शिवसिंह ने जन्म-काल के रूप में दिया है, जीवित था।"[१]

विवरणों तथा तिथियों के संबंध में सरोज का अधमर्ण होने पर भी, ग्रियर्सन की पुस्तक, किवदंश में ही सही, युग-विभाजन, पृष्ठभूमि-निर्देश, सामान्य-प्रवृत्ति-निरूपण तथा तुलनात्मक आलोचना एवं मूल्यांकनविषयक प्रयासों, तथा विवेचन की साहित्यिकता के कारण, यदि 'हिंदी का प्रथम साहित्यिक इतिहास'[२] माना जाय, तो यह उचित ही है।

हिंदी अनुवादकर्त्ता ने पुस्तक के महत्त्व की ईषत् अतिरंजित श्लाघा करते हुए कहा है, "यह हिंदी साहित्य की नींव का वह पत्थर है, जिस पर आचार्य शुक्ल ने अपने सुप्रसिद्ध इतिहास का भव्य भवन निर्मित किया। इस इतिहास-ग्रंथ का ऐतिहासिक महत्त्व है। इसने प्रारंभिक खोज-रिपोर्टों एवं मिश्रबंधु-विनोद को पूर्णतः प्रभावित किया है। शुक्लजी के इतिहास के प्रकाश में आने के पूर्व एक युग था, जब यह ग्रंथ अत्यंत महत्त्वपूर्ण समझा जाता था।"[३]

अनुवादक ने 'ग्रियर्सन के ग्रंथ का महत्त्व' प्रतिपादित करते हुए पुनः इस बात पर जोर दिया है—

"इस ग्रंथ में हिंदी साहित्य के इतिहास के विभिन्न काल-विभाग भी दिये गये हैं। विनोद में बहुत कुछ इन्हीं काल को स्वीकार कर लिया गया है।

प्रत्येक काल की तो नहीं, कुछ कालों की सामान्य प्रवृत्तियाँ भी दी गई हैं, यद्यपि यह विवरण अत्यंत संक्षिप्त है।"[४]

जहाँ तक मिश्रबंधुओं का प्रश्न है, उन्होंने 'संवतों एवं ग्रंथों के नाम' के लिए जिन पूर्ववर्ती कृतियों को अपना आधार माना है, उनमें ग्रियर्सन के इतिहास का[५] भी उल्लेख किया है। मिश्रबंधुओं ने अपने काल-विभाजन के लिए ग्रियर्सन के प्रति आभार प्रदर्शित करने की आवश्यकता नहीं समझी है, और कोई कारण नहीं है कि उनके लिए ऐसा करना उचित होता। मिश्रबंधुओं का काल-विभाग इस प्रकार है—

पूर्वारंभिक काल (सं॰ ७००-१३४३)

उत्तरारंभिक काल (सं॰ १३४४-१४४४)

पूर्वमाध्यमिक काल (सं॰ १४४५-१५६०)

प्रौढ़ माध्यमिक काल (सं॰ १५६१-१६८०)

पूर्वालंकृत काल (सं॰ १६८१-१७९०)

उत्तरालंकृत काल (सं॰ १७९१-१८८९)

अज्ञात काल ('प्रायः उत्तरालंकृत एवं परिवर्त्तन काल के'[६])

परिवर्त्तन काल (सं॰ १८९०-१९२५)

वर्त्तमान काल (सं॰ १९२६-)

ग्रियर्सन का, इसमें भिन्न काल-विभाजन, एवंविध है-

चारण काल

  1. उपरिवत्, पृ॰ ४६ ।
  2. उपरिवत्, पृ॰ ५ ।
  3. उपरिवत्, पृ॰ ५ ।
  4. उपरिवत्, पृ॰ ३६ ।
  5. विनोद, भूमिका, पृ॰ ७ (द्वि॰ सं॰) ।
  6. उपरिवत्, पृ॰ १३ (")।