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पृष्ठ:साहित्य का इतिहास-दर्शन.djvu/९३

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अध्याय १३


पंद्रहवीं शती का धार्मिक पुनर्जागरण

मलिक मुहम्मद जायसी की प्रेम-कविता

ब्रज का कृष्ण-संप्रदाय

मुगल-दरबार

तुलसीदास

रीति-काव्य

तुलसीदास के अन्य परवर्त्ती

अट्‍ठारहवीं शताब्दी

कंपनी के शासन में हिंदुस्तान

महारानी विक्टोरिया के शासन में हिंदुस्तान

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि ग्रियर्सन तथा मिश्रबंधुओं के काल-विभाजन में विशेष साम्य नहीं है। किंतु यह सत्य है कि ग्रियर्सन की योजना शुक्लजी के द्वारा, अवश्य अधिक व्यवस्थित बनाकर, अपनाई गई है। शुक्लजी का सुपरिचित काल-विभाजन इस प्रकार है—

वीरगाथा-काल

पूर्व-मध्यकाल (भक्तिकाल)

निर्गुणधारा (ज्ञानाश्रयी शाखा)
निर्गुणधारा (प्रेममार्गी सूफी शाखा)
सगुणधारा (रामभक्ति-शाखा)
सगुणधारा (कृष्णभक्ति-शाखा)

उत्तर-मध्यकाल (रीतिकाल)

आधुनिक काल

गद्य
काव्य-रचना

काल-विभाग की इस योजना पर स्पष्टतः न केवल ग्रियर्सन, बल्कि मिश्रबंधुओं की योजना की भी छाप है, यद्यपि शुक्लजी ने प्रथम का तो केवल नामोल्लेख किया है और दूसरे की अनावश्यक कटुता के साथ आलोचना ही की है।[] शुक्लजी ने प्रायः सभी मुख्य कालों के अंत में 'फुटकल रचनाएँ, 'अन्य कवि' के अंतर्गत काल-विशेष की मुख्य प्रवृत्ति से भिन्न धाराओं के कवियों का विवरण दिया है। ग्रियर्सन ने इसके लिए अपने विभिन्न कालों से संबद्ध परिच्छेदों के अंत में 'परिशिष्ट' दे दिये हैं।

वस्तुतः इससे कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हिंदी के विधेयवादी साहित्येतिहास के आद्य प्रवर्त्तक शुक्लजी नहीं, प्रत्युत ग्रियर्सन हैं। मिश्रबंधु-विनोद की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रीति से आलोचना करते हुए भी शुक्लजी ने स्वीकार किया है कि "कवियों के परिचयात्मक विवरण मैंने प्रायः मिश्रबंधु-विनोद से ही लिये हैं";[] किंतु आभ्यंतर साहित्यिक प्रवृत्तियों और बाह्य परिस्थितियों के बीच कार्य-कारण-संबंध निरूपित करने के प्रयास के श्रेय का अधिकारी उन्होंने अपने से पूर्व के किसी विद्वान् को नहीं माना है। इस संबंध में उनकी घोषणा है—

  1. हिंदी साहित्य का इतिहास, प्र॰ सं॰ का वक्तव्य, पृ॰ १ ।
  2. उपरिवत्, पृ॰ ७ ।