पृष्ठ:साहित्य का इतिहास-दर्शन.djvu/९६

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अध्याय १३ लेकिन अन्य प्रारंभिक रचयिताओं की कृतियाँ उन विद्वानों के कानों में खटकती है, जो पूर्णरूपेण संस्कृत-पदावली के अभ्यस्त हैं। इसलिए केशवदास आगे आये और उन्होंने काव्य-शास्त्र के सिद्धांतों को सदा के लिए स्थिर कर दिया। सत्रह वर्ष पश्चात्, सत्रहवीं शती के मध्य में, चिंतामणि त्रिपाठी और उनके भाइयों ने इनके द्वारा स्थापित नियमों को विकसित और पल्लवित किया । इस वर्ग के आचार्य कवियों की समाप्ति अत्यन्त उचित रूप में, सत्रहवीं शती के अन्त में, कालिदास त्रिवेदी से होती है, जो हजारा के रचयिता हैं, जो कि हिंदुस्तान के इस स्वर्ण-काल की रचनाओं के चयन का सर्वश्रेष्ठ और प्रथम विशाल संग्रह है।" २० (छ) “इस गौरवपूर्ण कवि (बिहारी) के साथ-साथ हमारा हिंदुस्तानी भाषा-साहित्य के स्वर्ण-काल का सर्वेक्षण समाप्त होता है । अट्ठारहवीं शती के प्रारंभ से ही एक अपेक्षाकृत अनुर्वर युग प्रारंभ होता है । यह मुगल-साम्राज्य के पतन और ह्रास तथा मराठा शक्ति के आधिपत्य और पतन का युग था।" २१ (ज) “उन्नीसवीं शती का पूर्वार्ध मराठा शक्ति के पतन से प्रारंभ होता है और गदर से समाप्त होता है। यह विशेषताओं से युक्त एक अन्य युग है। पिछली शती के अभावों के पश्चात् यह पुनर्जागरण-काल है। मुद्रण-यंत्रों का प्रवेश उत्तर-भारत में पहली बार हुआ; और तुलसीदास से प्रेरणा प्राप्त कर, एक स्वस्थ ढंग का साहित्य शीघ्रता से संपूर्ण देश में ओर-छोर फैल गया।"२२. . इन कतिपय उद्धरणों से स्पष्ट है कि हिन्दी साहित्य के इतिहास-लेखन के लिए विधेयवादी प्रणाली के विनियोग के प्रवर्तन के जिस श्रेय का अधिकारी पं० रामचंद्र शुक्ल अपने को मानते हैं, वह वस्तुतः ग्रियर्सन का प्राप्य है । ग्रियर्सन के इतिहास की कुछेक अन्य विशेषताएँ भी हैं, जिनकी झनक ऊपर के उद्धरणों में मिलती है ( क.) हिंदी साहित्य की अँगरेजी, संस्कृत तथा बँगला के साहित्यों से तुलना। (ख) मुगल दरबार तथा साहित्य-रचना के अन्य केंद्रों का निर्देश । (ग) प्राचीन कवियों के विवरणों के अतिरिक्त, सूक्ष्म दृष्टि से, साहित्यिक शैली में, उनका महत्त्व-निर्धारण, जो शुक्लजी की भी उल्लेख्य विशेषता है । (घ) कवियों के व्यक्तित्व तथा प्रभाव का वर्णन । टिप्पणियाँ १। 'द माडर्न वर्नैक्युलर लिट्रेचर आव हिंदुस्तान' पहले 'द जर्नल आव द रायल एशियाटिक सोसायटी आव बंगाल', भाग, १, १८८८ के विशेषांक के रूप में प्रकाशितः; १८८९ में सोसायटी, के द्वारा ही कलकत्ता से, पुस्तकाकार, प्रकाशित; किशोरी लाल गुप्त द्वारा 'हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास', के नाम से हिंदी में 'स-टिप्पण अनुवाद', हिंदी प्रचारक, वाराणसी, १९५७; इसी से उद्धरण आदि दिये गये हैं। २। उपर्युक्त हिंदी अनुवाद, पृ० ४६ । ३। उपरिवत्, पृ० ४६-४७ । ४। उपरिवत्, पृ २०-१० ।