जहाँ Reality अपने सच्चे रूप मे प्रवाहित हो रही है।और यह काम
अब गल्प के सिर आ पड़़ा है । कवि का रहस्य-मय संकेत समझने के
लिए अवकाश और शाति चाहिए । निबन्धो के गूढ तत्व तक पहुँचने के
लिए मनोयोग चाहिये । उपन्यास का आकार ही हमे भयभीत कर देता है,
और ड्रामे तो पढने की नही बल्कि देखने की वस्तु है। इसलिए, गल्प
ही आज साहित्य की प्रतिनिधि है, और कला उसे सजाने और सेवा
करने के और अपनी इस भारी जिम्मेदारी को पूरा करने के योग्य बनाने
मे दिलोजान से लगी हुई है । कहानी का आदर्श ऊँचा होता जा रहा
है, और जैसी कहानियाँ लिख कर बीस-पच्चीस साल पहले लोग ख्याति
पा जाते थे, आज उनसे सुन्दर कहानियों भी मामूली समझी जाती है।
हमे हर्ष है कि हिन्दी ने भी इस विकास में अपने मर्यादा की रक्षा की
है और आज हिन्दी मे ऐसे-ऐसे गल्पकार आ गये हैं, जो किसी भाषा के
लिए गौरव की वस्तु हैं । सदियो की गुलामी ने हमारे आत्म-विश्वास
को लुप्त कर दिया है, विचारो की आजादी नाम को भी नहीं रही ।
अपनी कोई चीज़ उस वक्त तक हमे नहीं जॅचती, जब तक यूरप के
आलोचक उसकी प्रशंसा न करे । इसलिए हिन्दी के आने वाले गल्प-
कारो को चाहे कभी वह स्थान न मिले, जिसके वे अधिकारी है, और इस
कसमपुरसी के कारण उनका हतोत्साह हो जाना भी स्वाभाविक है लेकिन
हमे तो उनकी रचनाओ मे जो आनन्द मिला है, वह पश्चिम से आई कहा-
नियो मे बहुतो मे नहीं मिला । संसार की सर्वश्रेष्ठ कहानियो का एक पोथा
अभी हाल मे ही हमने पढ़ा है, जिसमे यूरप की हरेक जाति, अमेरिका,
ब्राज़ील, मिस्र आदि सभी की चुनी हुई कहानियाँ दी गई है, मगर उनमे
आधी दरजन से ज्यादा ऐसी कहानियों नही मिली, जिनका हमारे ऊपर
रोब जारी हो जाता । इस संग्रह मे भारत के किसी गल्लकार की कोई
रचना नहीं है, यहाँ तक कि डॉ० रवीन्द्रनाथ की किसी रचना को
भी स्थान नहीं दिया गया । इससे संग्रहकर्ता की नीयत साफ जाहिर
हो जाती है । जब तक हम पराधीन हैं, हमारा साहित्य भी पराधीन
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