जिसे समाज और ससार कुचल डालना चाहता हो । पर वह अकेली
सारी दुनिया को चुनौती देने खड़ी हो । भुवनजी से हमारा परिचय
विचित्र परिस्थिति मे हुआ ओर हमने उनके रोम-रोम मे वह असतोष,
बह गहरी सूझ, और मनोभावों को व्यक्त करने की वह शक्ति पाई,
जो अगर सयम से काम लिया गया, और परिस्थितियो ने प्रतिभा को
कुचल न दिया, तो एक दिन हिन्दी का उन पर गर्व होगा। उनके
मिजाज में एक सैलानोपन है और उन्हे अपने-आप मे डूबे रहने और
अपनी कटुताओ से सरल जीवन का कटु बनाने का वह मरज है, जो
अगर एक अोर साहित्य की जान है, तो दूसरी ओर उसकी मौत भी है।
यह ड्रामे भी लिखते हैं और इनके कई एकाकी ड्रामे हस मे निकल चुके
हैं। जिन्होने वह ड्रामे पढ़े हैं, उनको मालूम हुअा होगा कि उनमें
कितनी चोट, कितना दर्द और कितना विद्रोह है । भुवनजी उर्दू भी
अच्छी जानते है, उर्दू और हिन्दी दोनो ही भाषाओं में शायरी करते हैं,
और साहित्य के मर्मज्ञ है। उन पर भास्कर वाइल्ड का गहरा रङ्ग चढ़ा
हुआ है, जो अद्भुत प्रतिभाशाली होने पर भी कला की पवित्रता को
निभा न सका।
इन तोना स्रष्टाओ से कुछ अलग श्री 'अज्ञेय' का रङ्ग है। उनकी रचनाओ मे यद्यपि 'आमद' नही 'आबुर्द है, पर उसके साथ ही गद्य- काव्य का रस है। वह भावना प्रधान होती है, गरिमा से भरी हुई, अतस्तल की अनुभूतियो से रञ्जित एक नये वातावरण मे ले जानेवाली, जिन्हे पढ़ कर, कुछ ऐसा आभास होता है कि हम ऊँचे उठ रहे है। लेकिन उनका आनन्द उठाने के लिए उन्हे ध्यान से पढ़ने की जरूरत है क्योकि वे जितना कहती हैं, उससे कहीं ज्यादा बे कहे छोड़ देती हैं। काश, अज्ञेयजी कल्पना-लोक से उतर कर यथार्थ के संसार मे आते ।
इन्हीं होनहार युवकों मे श्री जनार्दनराय नागर है। हमारे युवको मे
ऐसे सरल, ऐसे शीलवान, ऐसे सयमशील युवक कम होंगे। उनके साथ
बैठना और उनकी आत्मा से निकले हुए निष्कपट उद्गारों को सुनना